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प्रतिक्रमण हेतु गर्जित सद्याय.
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ते जाणी राखे जले जी, वारे वारे घणा छात्र ॥ उपाध्यायना रे आदेश श्री जी, मान्य बे तेह गुणपात्र ॥ साच० ॥ ३ ॥ माहा वग ते बगीने व गे जी, एक कहे मुग्ध न ह । जोउं हुं चरित्र सवि एहनुं जी, सहजथी कपट ह ॥ सा० ॥ ४ ॥ नर्मदाना पर कूलमां जी, गोपशुं सा निशि,
|| अन्यदा नर्मदा उतरे जी, कंने सा चोर पण जाय ॥ साच० ॥ ५ ॥ चोर एक ग्रह्यो रे जल जंतुयें जी, रोइ कहे सा दृग टांकी ॥ तीरथ मेलीने म ऊतरो जी, जाइ कुतीर्थ ते वांकी ॥ साच० ॥ ६ ॥ जोइ श्म छात्र पाठो बल्यो जी, बीजे दिने बलि देत ॥ राखतो छात्र जली परे कहे जी, श्लोक एक जाण होत ॥ साच० ॥ ७ ॥ श्लोक ॥ दिवा बिनेति का केभ्यो, रात्रौ तरति नर्मदां ॥ कुतीर्थ नीच जानासि, जलं जंत्व क्षिरोध नम् ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली ॥ सा कहे शुं करूं उपवरे जी, तुऊ सरिखा नवि द || ते कहे विदुं तुज पति थकी जी, हुइ ते पति मारी विलक्ष ॥ सा च ॥ ८ ॥ पोटले घाली अटवी गइ जी, थंजे शिर व्यंतरी तेह ॥ वन जमे मास पर गले जी, भूपने तृषी रे अबेह ॥ साच० ॥ ५ ॥ घर घर इमज जिक्षा नमे जी, पतिमारी ने दियो जिरक ॥ इम घणे कालें जाते थके जी, चित्तमां लही प्रति सिरक ॥ सा० ॥ १० ॥ अन्यदा संयतणी वंदेता जी, शिरथकी पडीयो ते जार ॥ व्रत ग्रही ते हलुई थजी, गर्दा यें
सुजस सुखकार ॥ साच० ॥ ११ ॥
|| ढाल ढारमी ते तरियारे नाश्तेतरिया, जे विषय न सेवे विरुरे ॥ एदेशी ॥ तेतरिया रे जाइ ते तरिया, क्रोधादिकथी जे उतरीया रे || सोही पक्किम आदरिया, वस्त्र दृष्टांत सांजरीया रे ॥ ते तरया ॥ १ ॥ ए
कणी ॥ वस्त्र मूल्य राजादिक धरिया, मलिन जाणी परहरिया रे || रजक लेइ ग्रंथि बांधी फरीया ॥ राजत उपरें करियां रे ॥ ते तरि० ॥ २ ॥ लेइ जल शिलकूटें पाथरिया, पगमद्दीं ऊंबरिया रे ॥ खार देइ वरनीरे कायो, गुरु वासरे सुरिया रे || ते तरि० ॥ ३ ॥ भूपतिने जूपति पी तरिया, तस शिरपर संवरीया रे | एम जे रागादिकगण वरीया, चष्ट थ नीसरिया रे || ते तरि ॥ ४ ॥ महिमा मूकी हुआ ठाकरिया, विरुद्ध कर्म याचारियां रे ॥ प्रायश्चित्तें करिया पाखरिया, ते पण गुरु उद्धरिया रे ॥ ते तरि ॥ ५ ॥ ते फरि हुआ महिमाना दरिया, शिष्ट जनें आदरि
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