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तेरकाठीयादिकनी संद्याय.
जें सोहे मन रुली || कहें कवि ॥ ६ ॥ इति नोकरवाली सच्चाय ॥
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सुणो लोको, राधो एक मन वली
॥ अथ तेर काठीयानी सद्याय ॥
॥ आलस पहेलो जी काठियो, धर्मे ढील कराय रे, निवारोजी का वि या तेर दूरें करो ॥ वीजो ते मोह पुत्र कलत्रशुं रंगें रहे लपटाय रे ॥ निवरोजी ॥ का० ॥ १ ॥ त्रीजो ते अवरण धर्ममां, बोले अवरण वाद | रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ चोथो ते दंनज काठियो, न लड़े विनयें सवाद रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ २ ॥ क्रोध ते काठियो पांचमो, रीशें रहे अम लाय रे || निवारोजी ॥ का० ॥ उठो प्रमाद ते काठियो, व्यसनें विगूतो श्राय रे || निवारोजी ॥ का० ॥ ३ ॥ कृपण काठियो सातमो, न गमे दा ननी वात रे || निवारोजी ॥ का || आठमो जयश्री नवी सुणे, नरका दिक अवदात रे || निवारोजी ॥ का० ॥ ४ ॥ नवमो ते शोक नामें क ह्यो, शोकें ठगं धर्म रे || निवारोजी ॥ काण || दशमो अज्ञाने ते नवि लहे, धर्म धर्मनो मर्म रे ॥ नित्रारोजी ॥ का० ॥ ५ ॥ विकथा नामें अग्यारमो, लोक वातें धरे प्रीत रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ कुतुहल का वियो वारमो, कौतुक जोवा धरे चित्त रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ ६ ॥ विषय ते काठियो तेरमो, नारि साथै घरे नेह रे ॥ निवारोजी ॥ का० ॥ श्री महि मा प्रसूरिनो, नाव साधु धन तेह रे || निवारोजी ॥ का० ॥ ७ ॥ इति श्री तेर का वियानी सद्याय ॥
॥ अथ महोटी होंस न करवा आश्रयी सद्यायं ॥
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|| होंशीडा जाई (प्राणि) होंश न कीजें महोटी ॥ वावी ढे वरटी बा जरी, तो शाली केम लहियें मोटी रे || ढों० ॥ प्राणी जेणें दीधुं तेणे ली धुं, जे देशे ते लेशे ॥ जेणे नवि दीधुं तेणे नवि लीधुं दीधा विना केम लेशे रे ॥ हों० ॥ १ ॥ वाव्या विना कर्षण केम लहियें, सेव्या विना केम वरियें ॥ पुण्य विना मनोरथ मोटा, दीघा विना केम करियें रे ॥ हों० ॥ ॥ २ ॥ शींसानी कोटी आपी, आपी तरुवानी त्रोटी ॥ ते सोनार कने कम मागीश, सोनानी करी मोटी रे ॥ हों० ॥ ३ ॥ शालीन धन्नो कयव नो, मूलदेव धनसार ॥ पुण्य विशेषें प्रत्यक्ष पाम्या, अलवेसर अवतार रे