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क्षमात्रीशीनी सद्याय.
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श्रावकर्मनारे जिहां मांड्या फंद के आवाणा जिहां देखे रे पुरगति दुःख दंद के । वा ॥ नवी दीसे रे जिहां ज्ञान दिणंद के ॥ वा ॥३॥ धस मसतां रे जिहां विषयनी जाल के॥वा॥ लीये लूंटी रे नगणे पलिवाल के वाणा अंटवी अनंती रे जिहां विकट उजाड के ॥ वा ॥ चाले नही रे जिहां व्रतनी वाड के ॥ वा ॥४॥ निरखंतारे श्रीजिनमुख नूर के.॥ वाणा हवे जग्यो रे महासमकेत सूर के वाणा पुःखदायी रे दोषि गया | घर के ॥ वाण ॥ वली प्रगट्या रे पुण्यतणा अंकूर के । वा ॥५॥ सुता जागो रे देसविरतिना कंत के ॥ वाण ॥ वली जागो रे सर्व विरति गुणवंत के॥ वाण ॥ तमे नेटो रे नावें लगवंत के ॥ वा ॥ पडिकमणां रे करो पुण्यवंत के ॥ वा ॥६॥ तमे लेजो रे देवगुरुनु नाम के ॥ वा ॥ वली करजो रे तमे धर्मनां काम के॥ वा ॥गुरुजननारे गाउँ गुणग्राम के ।। वा ॥ प्रेम धरीने रे करो पूज्य प्रणाम के ॥ वा ॥७॥ तमे करजो रे दशंविध पञ्चरकाण के ॥वा तुमे सुणजो रे श्रीसूत्रवखाण के । वा॥ आराधो रे श्रीजिननी आण के ॥ वाण॥ जिमपामोरे शिवपुर संगण के ॥ वाणाला सांजलीने रे श्रीमुखनी वाण के ॥ वाणा तमे करजो रे सही सफल विहाण के ।। वाणा वदे वाचक रे उदयरत्न सुजाण के । वा एह नणतां रे लहीये कोड कल्याण के ॥ वा ॥ ए॥ इति वाहणलां ॥
॥अथ दमात्रीशी प्रारंनः॥ ॥ आदर जीव दामागुण आदर, म करिश रागने द्वेष जी ॥ समतायें शिव सुख पामीजें, क्रोधे कुगति विशेष जी ॥ आ॥१॥ समता संजम सार सुणी जें, कल्पसूत्रनी साख जी॥ क्रोध पूर्वकोडि चारित्र बाले, नग वंत क्षणी परें जाख जी ॥ आ ॥२॥ कुण कुण जीव तस्या उपशमथी, सांजल तुं दृष्टांत जी ॥ कुण कुण जीव जम्या नवमांहे, क्रोध तणे विरतं त जी ॥आ॥३॥ सोमिल ससरे शीश प्रजात्यु, वांधी माटीनी पाल जी॥ गजसुकुमाल कमा मन धरतो, मुगति गयो ततकाल जी ॥आण ॥ ४ ॥ कुलवावुन साधु कहातो, कीधो क्रोध अपार जी ॥ कोणिकनी ग णिका वश पडियो, रडवडियो संसार जी ॥ आप ॥५॥ सोवनकार करी अति वेदन, वाध्रशुं वीट्युं शीश जी॥ मेतारजज्ञषि मुगते पोहोतो, उप शम एह जगीश जी ॥आप|६|| कुरुड अकुरुड-बे साधु कदाता, रह्या कु
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