Book Title: Sarvodayi Jain Tantra Author(s): Nandlal Jain Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas View full book textPage 7
________________ VI हो, यही कामना है। प्रो0 के0 व्ही0 मरडिया, लीड्स वि०वि०, ब्रिटेन __"जैन तत्रः सक्षेप मे" मे आपने जैन तंत्र के प्राय. सभी पक्षो को स्पष्ट रूप से तथा वैज्ञानिक रूप से देने का प्रयास किया है। इस सफल प्रयास के लिये बधाई। गणेश ललवानी, कलकत्ता आपकी इस पुस्तक से देश-विदेश के अग्रेजी पाठको को लाभ होगा। इसमें जैन परपरा की सक्षिप्त एव प्रामाणिक जानकारी दी गयी है। ऐसी उपयोगी और सारगर्भित पुस्तक के लिये बधाई। डॉ0 प्रेम सुमन जैन, उदयपुर पुस्तक पढी, अच्छी है। कुछेक जगह पर जैन मान्यताओ को गणितीय रूप देने का प्रयत्न बहुत अच्छा है। मुनि नंदिघोष विजय, अहमदाबाद “सर्वोदयी जैन तत्र' नामक हिंदी पुस्तक में आपने जैन सिद्धान्त, इतिहास, आचार सहिता आदि सभी विषयो की अत्यन्त उपयोगी सामग्री इतने सक्षेप मे देकर, आम आदमी पर बडा उपकार किया है। इतनी सरल भाषा और सुबोध शैली में वैज्ञानिक पद्धत्ति का अनुसरण करते हुए लिखी गई यह पुस्तक, निश्चय ही एक स्तुत्य प्रयास है। देश-विदेश का शिक्षित वर्ग इस पुस्तक से अवश्य लाभान्वित होगा। इस सद्-प्रयास हेतु अनेकानेक साधुवाद। डॉ. प्रकाश चन्द्र जैन कुद-कुद शोध सस्थान, इन्दौरPage Navigation
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