Book Title: Sarvodayi Jain Tantra Author(s): Nandlal Jain Publisher: Potdar Dharmik evam Parmarthik Nyas View full book textPage 5
________________ सर्वोदयी जैन तंत्र सर्वोदयी जैन तत्र नाम की इस कृति को मैने आद्योपात पढा है। इसमे जैन तत्र के सभी आधारभूत विषयो को छुआ है। पुस्तक पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जैन धर्म मे प्रवेश पाने वाले नये व्यक्ति के लिये या जिन्होंने जैन धर्म को अभी तक जाना ही नही है, उनके लिये बहुत उपयोगी है। जैन सिद्धान्त क्या है ? इसमे किस विषय को लेकर चर्चा है ? सुख-दुख की क्या परिभाषा है ? इसके मुख्य सिद्धान्त क्या है ? इन तमाम विषयो को लेकर यह पुस्तक लिखी गई है। हा, इतना अवश्य है कि कुछ शब्दो को बदल कर अग्रेजी भाषा मे प्रचलित शब्दो को लिखा गया है। इस ग्रन्थ के पढने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह जैनेतरो को भी जैन दर्शन का बोध कराने के उद्देश्य से लिखी गई है और इसमे लेखक सफल भी हुआ है। जैन दर्शन के समस्त अग-जैसे सात तत्व, सम्यक् दर्शनज्ञान- चरित्र, चार गतिया, चार कषाय, आठ कर्म चौदह गुण स्थान आदि के समस्त सूत्र इसमे यथास्थान लिखे गये है। लेखक ने काफी प्रयत्न किया- उन्हे एक जगह एक माला में गूथने का । अत. लेखक धन्यवाद का पात्र तो है ही और मै उनके इस कार्य की सराहना करता हुआ भविष्य मे भी उनसे ऐसी आशा करता हू कि वे आगे बढते रहे। कमल कुमार शास्त्रीPage Navigation
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