Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग-1
अर्थात् सम्यग्दर्शन को प्राप्त किए बिना, अनादि काल से केवल अनन्त दुःख ही भोगा है; उस अनन्त दुःख से मुक्त होने का एकमात्र उपाय सम्यग्दर्शन है; दूसरा नहीं ।
यह सम्यग्दर्शन आत्मा का ही स्व-स्वभावी गुण है । सुखी होने के लिए सम्यग्दर्शन को प्रगट करो ॥
कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन
हे जीवो ! यदि आत्म-कल्याण करना चाहते हो तो पवित्र सम्यग्दर्शन प्रगट करो। वह सम्यग्दर्शन प्रगट करने के लिए सत्समागम से स्वतः शुद्ध और समस्त प्रकार से परिपूर्ण आत्मस्वभाव की रुचि और विश्वास करो, उसी का लक्ष्य और आश्रय करो । इसके अतिरक्ति जो कुछ है, उस सर्व की रुचि, लक्ष्य और आश्रय छोड़ो। त्रिकाली स्वभाव सदा शुद्ध है, परिपूर्ण है और वर्तमान में भी वह प्रकाशमान है; इससे उसके आश्रय से / लक्ष्य से पूर्णता की प्रतीतिरूप सम्यग्दर्शन प्रगट होगा। यह सम्यग्दर्शन स्वयं कल्याणस्वरूप है और वही सर्व कल्याण का मूल है। ज्ञानी, सम्यग्दर्शन को कल्याण की मूर्ति कहते हैं । इसलिए हे जीवो ! तु सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन प्रगट करने का अभ्यास करो ।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.