Book Title: Samyag Darshan Part 01
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-1 हे कुन्दकुन्दादि आचार्यों! आपके वचन भी स्वरूपानुसन्धान के लिए इस पामर को परम उपकार भूत हुए हैं। इसलिए आपको परम
भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बिना, जन्मादि दुःखों की आत्यान्तिक निवृत्ति नहीं हो सकती।
(- श्रीमद् राजचन्द्र)
सम्यग्दर्शनरूपी पवित्र भूमि न दुःखबीजं शुभदर्शनक्षिप्तौ, कदाचन क्षिप्रमपि प्ररोहित। सदाप्युनुप्तं सुखबीजमुत्तमं,
कुदर्शने तद्विपरीतमिष्यते॥ भावार्थ :- सम्यग्दर्शनरूपी भूमि में कदाचित् दुःख का बीज गिर भी जाए तो भी सम्यग्दर्शनरूपी पवित्र भूमि में वह बीज कभी भी शीघ्र अंकुरित नहीं हो पाता, परन्तु दुःखांकुर उत्पन्न होने से प्रथम ही वह पवित्र भूमि का ताप उसे जला देता ही है; और उस पावन भूमि में सुख का बीज तो बिना बोये भी सदा उत्पन्न होता जाता है, परन्तु मिथ्यादर्शनरूपी भूमि में तो लगातार-उससे विपरीत फल होते हैं अर्थात् मिथ्यादर्शनरूपी भूमि में कदाचित् सुख का बीज बोने में आ जाए तो भी वह अंकुरित नहीं होता, परन्तु जल जाता है, और दुःख का बीज बिना बोये भी उत्पन्न होता है।
-सागार धर्मामृत पृष्ठ 25
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