Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 20
________________ The Text सागरदत्त-श्रेष्ठि-रासक विमल-कर-कमल-परिमल-मिलंत-रोलंब-मंगलारावं । अमिय कमंडलु-पाणि- पणमामि सरस्सइं देवि ॥१ सिद्धत्थो सिद्धत्थो, पसिद्ध- पल्लीपुरालए वीरो । सिद्धत्थराय-पुत्तो, सिद्धत्थं देहु महु वयणं ॥२ सिरि आमएवसूरी-सरस्स-पय--पउम जुयलं वंदे । लच्छी- सरस्सईओ, सुपसन्ना जस्स सेवाए ॥३ छंदंतर-कल्लोलं, वन्न-जलं संतिसूरिणा महियं । सायरचरियं सायर-सरिसं सरसं निसामेह ॥४ नयरी नयरियनाहा- बुह-गुरु-कवि-केउ-मंडियारामा । अमरउरी इव महुरा, रेहइ तियस-व्व आहरणा ।।५ जत्थिदं. नील-मणि-निम्मियाण सुरमंदिराण । किरण लिहेरियं (?) पिव, पिक्खंता, रवि-रहतुरया न चल्लंति ॥६ रासाबंध तहिं राजु करइ राजा जयंतु, राणी जइमाला-तणु कंतु । वइरिय, विसहर- पंखिराउ, वइरिय-पंचाणण-अट्ठपाउ ॥७ वइरिय-मय-गलट गंधहत्थि, वइरिय-सायर-सोसण-अगत्थि । अलवेसरु दाणे सुजाणु, महिमंडले ऊगिउ अवरू भाणु ॥८ अडिल्ल गंभीरिम-गुण-निज्जिय-सायरु, निय-वाणुत्त-पवित्त-दिसायरु। दुत्थिय लोय-सफल-- आसायरु, सत्थ-वाहु तहिं निवसइ सायरु ॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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