Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ॐ
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कांयाई बोलीतउ ते तिणि स्थानकि बेउ आव्या, ते भुंछ लोकाँ मनि न सुहाव्या कहउ उदेशन पूछाँ कांई एक अपूर्व वात भलउँ सिउँ पुण्य किं पाप ॥१६१
अडिल्लाई मिश्र बोली तउ ते बोलइँ भुंछ मुछाला, माणस रूपि जाणि करि छाला । कहउ बाप किसिउँ मागु जाप अह सिउँ जाणउँ पुण्य कइ पाप । १६२
अथ सूड म्हइ करसण कराँ, खेत्र पाणी-सुँ भराँ. कास बालाँ, डुंगरि दव परजालाँ, वालराँ वावाँ, घणा दिन कुँ लूणी तवावाँ, भइसि चूषा, बोलाँ गाढाँ, जिम्मा कद्दन ताढाँ, मोटा द्रह तलाव सोसाँ, बिलाइ कूकर पोसाँ, ढोर चारों, साप माराँ, वड-पीपला भखाँ, लूणाँ नीलाँ, कराँ सूडा बोलाँ, कूड गांडा वाहणि खडाँ, अनड संडादिक नडाँ, आपा पणी क्षेत्र पालाँ काजि झंबि झंबि पडाँ,
मधुमीण संचाँ, वाछडां पाडाँ दूधि वंचाँ, ११. सांड गाइ-तणा कर्णकम्बल छेदाँ,
ते बयलि हलि गाडइँ वाहणि भार-सुँ गाढाँ खेदाँ, कुसि कुद्दाल हल हथीयार वहाँ,
राति दीह खेत खले माले रहाँ, १३. पीयाँ पर धल छासि, वसाँ आपणइ सासि, १४. धरमउ कुँ न जाणाँ नाम, कराँ सदा काम, . .
खाउँ खीच, टलइ घाँच, इम सुखइ भराँ पेट, म्हाँकि पूछउ रे भोलाँ, पाप-पुण्य-की नेट ॥१६३॥
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गाथा
इअ निसुणिऊण कुमरो, पामर-वयणाइँ अरुड-बरडाइँ।
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