Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 86
________________ [73] गाथा अह तक्खणं सुसज्जुय, नीलुप्पल-नयण-वयण पसिचंगो । कुमरो पासइ सव्वं, नाणी व विसेस-दिट्ठि-जुओ ॥ ३१३ तत्तो विम्हिय-चित्तो पमुइअंगत्तो मणम्मि चिंतेइ ।। धम्म-तरु-संस--जणि फुलं खलु जायमिणमसमं ॥ ३१४ अह चंपाए जियसत्तु राय-पुत्तीइ कर-गहेण फलं । भावि भवम्मि ईहेव-य तमुवक्कमकरण मह झत्ति ॥ ३१५ दूहउ मुंन करताँ नहु कलह० ॥ ३१६ पद्धडी इस चिंतिय चित्तिहिँ कुमर-वीर, तस पक्खि-पक्खि संलीण धीर । वाहिय तिहँ सुहि रयणि सेस, पच्चूसि पत्त चंपह पएस ॥ ३१७ पक्खालिय सरवरि हत्थ-पाउ, तसु उववणि लिय फल-फुल्ल-साउ । चल्लिय चंपापुरि पुव्व-बारि, पडु-पडह-घोस-वयणाणुसारि ॥३१८ तिह लहिय इक्क वाचइ सिलोग, जिह उब्भा बहुअर रज्ज-लोग । जे पुरिस सुपोरिस राय-कण्ण, जच्चंध न्यण सज्जइ सु धन्न ॥३१९ तसु दिअइ राय अद्धंग-रज्ज, तसु होइ सावि अद्धंग-भज्ज । इम वच्चिय मच्चिय पुव्व-पेमि, पत्तउ पुर-भिंतरि कुमर खेमि ॥३२० तं जाणिय राय-निउत्त-पुंस, इम बुल्लइँ जय जय निव-वयंस ।। तुअ मणह मणोरह पुण्णदेव, मग्गइ ति पुरिस-वर इक्क सेव ॥ ३२१ इम सुणिय राय हरसिय अपार, तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ फार । उक्कंठिय निव-दंसणिहिँ तासु, सहसक्ख जेम मन्नइँ नियास ॥३२२ तं पिक्खिय बहु-गुण-रूव-रूव, मनि चमकिउ चिंतउ एम भूव । किं सुरवर किं विज्जाहरिंद, कइ ईस बंभ गोविंद चंद ॥ ३२३ आलिंगण-रंग-सुरंग - भूव, निय मुणइ सहस-भुअ जिम सरू व । इणि कारणि तेडइ निय-सुपासि, ललिअंग-कुमर-वर दीवियास ॥३२४ किं नंदी किं पुणु नलनरेस, किं विक्कम विक्कम-गुण-असेस । किं मयण रूवधर दिठ्ठ एउ, जं दिज्जइ उप्पम लहइ तेउ ॥ ३२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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