Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 107
________________ [94] घण सुघट सोवन घाट, वर-रयण-पूरिय-थाट । बहु-मुल्ल हीर-सुचीर, मिय-नाभि-कल-कसमीर ॥ ५०७ जियशत्रु-नरवर-रेसि, सिरिवास-नयर-नरेसि ।। मुक्कलिय इम बहु भेट, कमि पत्त चंपह थेट ।। ५०८ ते जाणि मणि महिंद, ललियंग-कुमर-नरिंद । संमुहिय संमुह-कज्जि, हय-गय-सुरह-भड सज्जि ॥ ५०९ वस्तु बहुअ उच्छवि, बहुअ उच्छवि मिलिय समुदाय । नरवाहण-मंतीस-वर, कुमर-राय जिअअरि सु-परियरि नयर-माहि निय मंदिरिहिं, लिद्ध ते वि उच्छव सु-परियरि । पुच्छिय सहु वित्तंत तसु लज्जिउ निय मणि भूव चिंतइ अहह कि माहरउं ए कहु कवण सरूव ॥ ५१० लेइय अंकिहि, लेइय अंकिहिँ, राय निय-पुत्ति झत्ति झडत अंसुय नयण, वयण एम जंपइ नराहिव तउँ जि पनूती पुन्न-लगि, जास एह बहु गुण सु साहिव ॥ धिद्धि मुझ मइ-मोह बहु, जसु एरिस अवियार वच्छे कारणि तिणि अम्हे, लेसिउँ संयम-भार ॥ ५११ चालि इम कहिय रहिय-वियार, बहु लद्ध धम्म-वियार । थप्पइ सु कुमर-नरिंद, निय सयल-रज्जि नरिंद ॥ ५१२ समुहुत्त दिवस-विसेसि, किय तासु रज्जभिसेसि । सहु खमिय खामिय रोस, तसु सुयण कारिय दोस ॥ ५१३ ललिअंग-रायकुमारि, सिउँ सहुअ निय-परिवारि । मुकलावि निव जियसत्तु, जिय-मोह-मयण-दुसत्तु ॥ ५१४ लहु पत्त तव वण-अंति, बहु तविय तव एकंति । खण चत्त पाव पमाय, हुअ सग्गि सुरवर-राय ॥ ५१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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