Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 109
________________ [96] गाथा इअ जाणिऊण राया, जायामंदाणराग-हिय-हियओ । जंपइ कहु पुत्त तुमं, कहं ठिउ विम्हरित्तु अम्हं || ५२८ सो पहरो पाव-हरो, सा घडिया सुकइ कम्म साघडिया । सा वेला सुह वेला, जं दीसइ पुत्त-मुह-कमलं ॥ ५२९ चालि धन धन्न सुअ दिण अज्ज, धन धन्न इह मुझ रज्ज । धन धन्न जीविय देह, जिह मिलिउ तउं गुण-गेह ॥ ५३० किम जाण जाणिय मग्ग, निय पियर संगम सग्ग । किम किद्ध अम्ह बहु सार, जं मिल्हि गिउ निरधार ॥ ५३१ जं किउ अम्ह कुण दोस, तं खमि न खमि बहु-रोस । तुं पुत्त गुणहि गरिठ्ठ, निय-पुण्णि तिहुयणि इट्ठ ॥ ५३२ हिव हुऊ पाव-विराम, सोनइ म लग्गि साम । अम्ह मिलिउ पेम-पियार, तउं पुत्त बहु-गुण-सार ।। ५३३ जव रोसि रक्खिय बार, अम्हि तुम्हि किउ अविचार ।। तव किद्ध किम अम्ह-रेसि, निय चित्त कठिण विदेसि ॥ ५३४ म म करिसि मनि बहु भंति, अम्ह अछइ एह जि खंति । तुम्ह देह इहु सहु रज्ज, हऊं करिसि पर-भवि कज ।। ५३५ इम सुणिय नरवइ-वयण, ललिअंगह सअंसुयनयण । वलि वलि सु लग्गइ पाय, विण्णवइ सुणि नरराय ॥ ५३६ मन धरिसि पिय एम चित्ति, अम्ह हुइ एह अजुत्ति । नवि हुइ ताय कुताय, जइ जाय होइ कुजाय ।। ५३७ हउं हुउ तुम्ह कुल-कट्ठि, घुण जेम गय-सुह-सिट्ठि । इत दिवस विण पहु-सेव, निग्गमिय जं अम्हि देव ॥ ५३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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