Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 111
________________ [98] रसाउलउ नरवाहण सुअ मिलिय दुक्ख दूरहिँ टलिय । सुयण-आसा फलिय निय-सुरज्ज-भर कलिय । पिसुण पवणिहिं पुलिय, कित्ति चिहुं दिसि चलिय वसण सयल गय गलिय अरियण सवि निर्दलिय । ललिअंग-राय अतुलब्बलिय, सत्तु सयल पय-तुलि लुलिय मुनिराउ देवसुंदर रलिय, जसु जस जंपइ वलि चलिय ।। ५५१ चालि इम तासु दिद्ध नरेस, निय रज्ज-रिद्धि असेस । मुकलावि सहु निय-लोय, मनि धरिय बहुय पमोय ।। ५५२ सिक्खविय सहु निव रीति, चल्लिउ चोखिम चीति । नरवाह सहि-गुरु-पासि, लिय चरण मन-उल्हासि ॥ ५५३ दुद्धर-महव्वय-धार, पालंति पंचाचार । नितु समिति गुपति सुजाण, गुण गरुअ मेर-समाण ।। ५५४ लहु खविय घाइअ कम्म, किय सहल जिण-मुणि-धम्म । पामिउ ति तिजय-पहाण, रिसि-राइ केवल-नाण ॥ ५५५ तिहं थका बहु-परिवारि, सिरिवास--नयर-मझारि । नवकप्प करइ विहार, बुज्झवइ भविय अपारि ।। ५५६ ललिअंग रंगिहि ताम, सह भज्ज स्रुह-परिणाम । पडिवजइ सावय-धम्म, धुरि बोधि सोधि सुरम्म ।। ५५७ वलि नमिय निय-गुरु-पाय, बहु-धम्म-लद्ध-पसाय । पत्तउ सगेहिणि गेहि, रसि रमई दुइ बहु-नेहि ।। ५५८ भोगवइ बहुअ विलास, पूरवइ जग सहु आस । पालंति निरतीचार, निय-देस-विरइ-वियार ।। ५५९ कारवइ वर प्रासाद, गिरि-मेर-सिउं लइ वाद । वित्थरइ जगि जस-साद, नव-खंडइ नरवइ-नाद ।। ५६० दिइ सत्त-खित्तिहिं दाण, निय देव गुरु बहुमाण । ललिअंग पुण्य-पसाइ, हुय रज्ज दुन्निह राय ।। ५६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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