Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 113
________________ [ 100 ] ससि-रस-सुविक्कम-काल, ए चरिय रचिउं रसाल । जां धूअ रवि ससि मेर, तां जयउ गच्छ संडेर ।। ५७५ वाचंत वीर-चरित्त, वित्थरउ जगि जय-कित्ति । तसु मणुअ-भव धन धन्न, श्री-पासनाह प्रसन्न ।। ५७६ ना ॥ इति श्रीललितांगनरेश्वरचरित्रं समाप्तं । तस्मिन् समाप्ते समाप्तोऽयं रासक-चूडामणि पुण्यप्रबन्धः ॥ तथाऽत्र रासके श्रीललितांगचरित्रे प्रथम-गाथा, (१) दूहा, (२) साटक, (३ पट्पद, (४) कुंडलिया, (५) रसाउला, (६) वस्तु, (७) इंद्रवज्रोपेन्द्रवज्रा (८) काव्य, (९ अडिल्ल, (१०) मडिल्ल, (११) काव्याद्धबोली, (१२) अडिल्लार्ध बोली,, (५३) सूडबोली (१४) वर्णनबोली, (१५) यमकबोली, (१६) छोटडा दूहा, (१७) सोरठा 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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