Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[99] बहु दिवस पालिय धम्म, अणुसरिय अणसण रम्म । ललिअंग सग्गि विमाणि, हुय देवलोकि पुण्य प्रमाणि ॥ ५६२ वलि बहुय पुण्य पयासि, सुहि लहिय नरभव-वास । महाविदेहई देव, लहस्यइ ति सिद्धि सु हेव ॥ ५६३ पुण्यइ ति धण-कण-रिद्धि, पुण्यइ ति पयड प्रसिद्धि ।। पुण्यइ ति राणिम राज, पुण्यइ सरई सहु काज ॥ ५६४ पुण्यइ ति सग्ग-विमाण, पुण्यइ ति पंचम-ठाण । जगि पयड पुण्य पवित्त, ललियंग-राय-चरित्त ॥ ५६५
महि महति मालवदेस, धण-कणय-लच्छि-निवेस । तिहं नयर मंडव-दुग्ग, अहिणवउ जाणि कि सग्ग ॥ ५६६ तिहं अतुल-बल गुणवंत, श्रीग्यास-सुत जयवंत । समरथ साहस धीर, श्रीपातसाह-निसीर ॥ ५६७ तसु रज्जि सकल प्रधान, गुण-रूव-रयण-निधान । हिंदूआ राय-वजीर, श्रीमुंज-मयणह वीर ॥ ५६८ सिरिमाल-वंसवयंस, मानिनी-मानस-हंस । सोनी राय-जीवन-पुत्त, बहु पुत्त-परियर-जुत्त ॥ ५६९ श्रीमलिक माफर पट्टि, हय-गय सुहड-बहु-थट्टि । श्रीपुंज पुंज नरिंद, बहु-कवित-केलि-सुछंद ॥ ५७० नवरस-विलासउ लोल, नव-गाह-गेय-कलोल ।। निय-बुद्धि-बहुअ-विनाणि, गुरु धम्म-फल बहु जाणि ।। ५७१ इह पुण्यचरिय-प्रबंध, ललिअंग-नृप-संबंध ।। पहु-पास-चरियह चित्त, उद्धरिय एह चरित्त ॥ ५७२ दसपुरह नयर-मझारि, श्री संघ-तणइ आधारि । श्री शांतिसूरि सुपसाइं, दुह-दुरिय दूरि पलाइं ॥ ५७३ जं किम वि अलिय असार, गुरु लहुअ वर्णविचार । कवि कविउं ईश्वर-सूरि, तं खमउ बहु-गुण सूरि ॥ ५७४
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