Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 106
________________ [93] पत्ता पुर-भिंतरि तव दुआरि, पडिहारि पएसिय किय-जुहारि । विण्णविय वसुह-धव कुमर वत्त, इम सुणिय तत्थ अवरोह पत्त ।। ४९५ उक्कंठिय जिम नव-मेहि मोर, कंद्धधुर-बंधुर सयल पोर । वाचंति विउलमइ राय-लेह, नरवाहण-निव गुण-गाह-गेह ॥ ४९६ लेख-गाथा सत्थि सिरि सिरि-निवासे, सिरिवास-पुरम्मि पुज्ज-पिय-पाए । नरवाहण-नरराए, सुपुत्त-पोत्तार-परियरिए । ४९७ गय-कंप-चंप-नयरह सामी, नामि त्थु सीस मणुगामी (?) । मउलिय-कर-कमल-जुओ, जियसत्तू विण्णवइ एवं ॥ ४९८ सामिय तुम्हाण सुओ, ललियंगो नाम विस्सुओ लोए । कय-पाणिग्गह-रूवो, भूवो चंपद्धरज्जस्स ॥ ४९९ इअ सहसा-वयणेणं तेणं भेग(भिग्गो?) नव-जलय-सित्तो । उज्जीविय-व्व संपइ जंपइ नरवाहणो एवं ॥ ५०० तेण सम(म) महं निच्चं, सुभिच्च-भावं करेमि जह तुम्हं । कायव्वं तह नरवइ, जइअव्वं सुहिय-हिय-करणे ॥ ५०१ अह होइह भुवणयले, जियसत्तु समो न कोवि मम बंधू । जेणेसो ललिअंगो, संठविओ निय-समीवम्मि । ५०२ जीविय-सव्वस्समिणं विस्स-जणस्सेव अम्ह कुल-कलसो । कुमरो दिसंत-भमिरोह सव्वडियो (?) संठवियो (?) नियट्ठाणे ॥ ५०२ यथा वेला-महल्ल-कल्लोल-पिल्लियं जइ-वि गिरि-नई-पत्तं । अणुसरइ मग्ग-लग्गं, पुणो-वि रयणायरे रयणं । ५०३ चालि सलहित्तु इम नरराय, तसु दिद्ध बहुअ पसाय । बहु भत्ति भोयण-वार, धण कणय कप्पड फार ।। ५०४ बहु-दाण-माणिहिँ पोसि, चल्लविय गुरु संतोसि । तसु सत्थि पेसिय मंति, ललियंग-तेडण-मंति ॥ ५०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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