Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[91] सूतउं सेलां माथउं करी, मरउँ सुहावा कंत ।। निसि भरि नख जव देअती, तव कुणणतउ कंत । खग्ग-झटुक्का किम सह्या, किम सहिया गय-दंत ॥ ४६९ कंतह करउं ति भामणा, जिम जिम देखउँ अंखि । इक्क लडइ असिवर धरइ, वयरी गया ति झखि ॥ ४७०
सोरठिया दूहा ॥ राग सोरठी ॥
(सखी आह) ए कीणइ सहु कोइ, सहु कीणइ ए को नहीं । कटक निहाली जोइ, सूनउ सोरठीउ भणइ ।। ४७१ भलउं भणाविउं भामि, भारथि जिम मूवइ सरिस । रायह एही सीम, जइ जामाई- सिउं कलह ॥ ४७२ सहियर साम्हउं देखि, ओ असवार तिहां सुतई । राखइ राउत-रेख, रण-रसि रमतां रायसुं ।। ४७३ इम करतां सुविहाण, सहियर-सुं गुण-गोठडी । कुंअरी बि-पुहरां जांण, किलउ हूउ कुरु-खेत जिम ॥ ४७४ जोताँ बहु जण तेणि, झडपड लीधा झाटके । रायह दलि नवि केणि, नासत नवि काढी छुरी ॥ ४७५
पद्धडी उडुंति पवणि जिम अक्क-तूल, विक्खरइं वसुहि जिम घास-पूल । तणु कंजिय गंजिय जेम खीर, नासविय कुमरि तिम राय-वीर ॥४७६ भज्जंत सुहड इम दिट्ठ जाम, बिहु मंति बिहुं दलि मिलिय ताम । अउसरिय कटक दुइ दिद्ध--आण, सह पत्त झत्ति भू-वइअ-थाण ।। ४७७ कहि सामिय भामिय केण तुम्ह, किणि कारणि एवड झुज्झ-कम्म । अविमासिउं म म करि देव हेव, इणि वत्ति तत्ति तूअ पडइ खेव ॥ ४७८ अविमासिय जे नर करइ काम, ते हुई पुरिस बहु दुक्ख-धाम । वलि लहइं लोइ अविवेय-कित्ति, तसु छंडई लहु लहु जलहि-पुत्ति ॥ ४७९ जामाय-सरिस जं तुम्ह झूझ, तं जाणि जाणि बहिरेण गुज्झ । रोपीइ जइ वि विसतरु नियाणि, छेदिज्जइं निय-करि किम वियाणि ।। ४८०
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