Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 103
________________ [90] वीररस । मध्ये शृंगारान्तर्भाव । सद्भूतरा अहूठिया दूहा ॥ सहिए देवि न दाहिणइ, करि करवाल करंत । ओ झूझइ ललियंगि वर, नाना कंत ॥ ४५७ कंत कोइ भड भीम वरि किम पुज्जई व सुरेस । अलिय म जंपिसि बहिनि तउँ, नाना मरेस ॥ ४५८ कुमर नथी रायह भणइ, तू-विण अवर न कोइ । मुंधि मयण समरूपि तु, नाना सोइ ॥ ४५९ सोहि समरथ सामी सकल, रूपिहिँ अहिणव काम । वलि वलि पूछउं हे सही, (तास तणउं (सिउं) नाम ।। ४६० नाम लिउं सखि तसु तणउं, जइ हुअइ हियडा-दूरि ।। उवालंभ वर अम्ह तणउँ, (रमइ ति) रण-रस-पूरि ॥ ४६१ सहिनामा दूहा ॥ रागाँ सविहिँ जेउ धुरि, तिणि नामिइ सहि नाम । तसु अग्गलि अंगेण सिउँ, सहिय सुणावे सामि ।। ४६२ रूडा नामइ अच्छइ जसु, तसु नामइ सहि नाम तसु अग्गलि अंगेण, सिउं सहिय सु० ॥ ४६३ (दुहा) हयवरि चडिउ तिहाँ सु लई, हक्कई अरियण-थट्ट । हुं बलिहारी प्रिय-तण', दूरि नडंती नट्ठ ॥ (गग नाट) नट्ट-भंजण रिपु-जलण, सहिय हमारा कंत । रणि सूराँ घरि मागताँ, हसि हसि प्रेम मिलंति ।। ४६५ मह कंतह दुइ दोसडा, अवर म झंपु आल । दिज्जंतइं हउँ ऊगरी, जुज्झंतइ करवाल ॥ ४६६ (राग सिंधूडउ) पाय विलग्गी अंतडी ।। ४६७ वाई फरकइ मूंछडी, मुखिहिक बीड्या दंत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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