Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 84
________________ [71] इक्रियण विहि- दोस- वसिइँ इक्क-इक्क- दोसेण जुअ ||२९३ चंद कीउ सकलंक काय न न दिद्धी मयणह सुयणह दद्ध दरिद्द लच्छिले दिद्धी किवणह || लोयण दिद्ध कुरंग लोणहीणच्छी नारी नागवल्ल फलहीण अवर फल रक्ख असारी ॥ सोरंभहीण कनकह कीउ तियसलोय विब्भम भुयउ हा हा जि दैव करता पुरिस, ठामि ठामि भुल्लवि गयउ ॥ २९४ गाथा इह ताव निसग्गेणं, चिंताए पुत्तिया हवइ पुणो । सविसेस - कुविहि णी दूसिय- देहा इमा जयह ॥ २९५ जामं ( जम्मं) तीए सोगो व ंतीए वड्ढए चिंता० ॥ २९६ वस्तु इम विमासिय इम विमासिय वसुह वर- - बुद्धि । जसु संवर कारणिहिँ, नयर मज्झि पडहु वज्जाविय । नयर र- लोय निस्सोय सवि, सुणउ वयण निय-मणि सुहाविय ॥ जेउ करइ कुमरी - तणां, नयण-कमल लहु सज्ज वरइ तेउ तीह कण्णसिउं लच्छिसमिद्धह रज्ज || २९७ दूहउ कोइ नच्चाविउ नवि गयउ छविउ न पडहउ कीणि । विहाणइ हउं जाइसु तिहाँ, पक्खिय-कारणि तीणि ॥ २९८ पद्धडी हम कहिय पक्खि जव रहिउ मूनि पुच्छिउ तव पक्खिर इक्क जूनि । कहु ताय तीइ जच्चंध-- दिट्ठि, किम होस्यइ अहव न नयण--सिद्धि ॥ २९९ तव बुल्लिउ वड- भारंड - राउ, तउँ किं पि न जाणइ लहुअ जाउ । मणि - मंत- महोसहि बहु- पभाव, जगि अछइँ नव नव - गुण सहाव ॥३०० जउ पुण्ण जोगि गुरु जोग होइ, तव लहइ न तसु गुण-पार कोइ । इम सुणिय सउणि वलि पुट्ठ एम, कहु कामिय-गामु असोज केम ||३०१ वलि कहइ विहंगम - राउ मुद्ध, जउ पुच्छसि तउ वलि कहउँ सुद्ध ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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