Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 98
________________ [85] अन्न वयणि मणि अन्न कज्ज सच्छंदह चारिणि । वेस धम्म जिम धम्मराय रायह तिणि कारणि ॥ ४१४ विण अवसरि जे कज्जडां, विण पत्थाविहिँ माण । विण अवसरि तरु फुल्ल फल, ए त्रिण्हइ सुनियाण ॥ ए त्रिण्हइ सुनियाण जाण इम जाणि न चित्तिहिँ हसइ कोइ नवि निउण बहुअ कोऊहल-वित्तिहिँ । हक्कारण-मिसि हेउअ वर बुज्झि न अवसरि इणि कज्जह कज्ज-विणास जेउ किज्जइ अवसर-विण ॥ ४१५ सिउँ जंपिउँ बहुअर विरस, सार वयण सुणि सामि । जिम दज्झण-भइ दारु कर, लिद्धउ सुह परिणामि ॥ लिद्धउ सुह परिणामि घाय-रक्खण जिम उज्जण तिम पत्थावि पसत्थ पवर पंडिय सेवय-ज्ञण । पेसिय राय समीवि सुयण सच्वउ तुम्ह अणुयर किज्जइ अप्पण-काम सामि.सिउँ जंपउँ बहुअर ।। ४१६ चालि इम सुणवि सवणि उदार, तसु वयण अमिय कुमार चिंतइ ति नियमणि तु?, अह रमणि गुणह गरि? ॥ ४१८ धन धन्न मुझ अवयार, संसारि पुरिस-पयार धन धन्न इह मुझ रज्ज, जसु सुहिय एरिस भज्ज ॥ ४१९ धन धन सुललिय वाणि, बहु-विणय-गुण-गुरु-माणि । धन धन सुचरिय सील, दुह-वल्लि-मूलनि कील ॥ ४२० आसन्न-रण-रस-रंगि, बहु-मूढ-मंत-कुसंगि । जोईइ जसु सुह वयण, सु जि पुरुस-इत्थिय-रयण ॥ ४२१ मणि धरिय इम तसु सीख, अवसरिय इक्क दुइ वीख । बुल्लावि सुयण ससबंधु, सहु कहिय कुमरि निबंधु ॥ ४२२ पट्टविय पहु छल-रेसि, तसु दुटु कम्म-विसेसि । अहमयि पत्त सु जाम, निव मुत्त जणि गुणि ताम ॥ ४२३ हवि हणिउ खग्ग-पहारि, तसु पाव-बुद्धि वियारि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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