Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 100
________________ [ 87 ] कोवाकुल- - -चल- चित्तो, जुत्तो सिनेण संचलिओ || ४३७ दुमिला पसरंत उतंग-तुरंगम-संगम-तुंग-तरंग-चड़ंत-घणं मय-मत्त महागिरि - सुंदर - सिंधुर-बंधुर- सेतु - सुबंध भणं । वर - नक्क-सुयक्क - महारह- संकुल- मच्छ-सुकच्छ- व सूर-नरं कुमरिंद नरिंद महाबल - सायर - दीसत कायर - पाण- हरं ।। ४३८ अडिल्ल पाण- हरण- पक्खर - घग्घरी- रव हहहहण - हय हिंसा - रव । खुर-रव- खेहि सूर - कर ढंकिय गह- गण इंद चंद सुर संकिय ॥ ४३९ रोडिला संक्या सयल सुर-नरेस, पायालि नाग असेस, मेल्हंति धरणि सेस, सूभर-भरं । चलइ चउदिसि दिग्गय - चक्क, हुअंति सु हक्कोहक्क, भज्जति कायर फक्क, नासत नरं ॥ कंपइ सयल कुल - गिरिंद, चालंत मत्तगयंद, ढलंत ढालसु-विंध, सोहत घणं । इम मिलंति कुमर - सेन्न, फिरंति अंबरि सेन, डरंति दुयण के न, देखत खणं ॥ ४४० खणि खणि मिलिय महा-दल समहरि विलसई वीर महाबलि समहरि । सिंह -- नादि सामत्थिम दक्खई निय - कुल - ठामि सामि छल रक्खई ॥ ४४१ नाराच -संवरा रहंति नाम चंद जाम तासु सग्ग-‍ वरंति जीणि हेउ तीणि जुज्झ - कज्ज - सुंदरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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