Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 90
________________ [77] मणुअभवि अ(सु?)र दोगुंद जिम जाणए ॥ ३४९ अहिणवउ इंद गोविंद कइ चंदओ कुमर ललिअंग ललिअंग पर नंदओ । दितु आसीस इम लोय सह निय-गिहं कुमर-राओ वि गंतूण भुंजइ सुहं ॥ ३५० इति श्री षट्ऋतु-भोग-चक्रवर्ति-चक्रकोटीर-सकल-गुण-रत्न-सिन्धुमलिकराज-श्रीमुञ्जराज-सबन्धु-पुत्र पवित्र-श्रीलखराजादि-सकल-परिकर-शंकरसंसेवित-शुभवन्नीर २ निजामलकुलकमल-सुबोधानकमार्तण्डावतार ३ ज्ञातिशृङ्गार ४ संसार-देवि-राजी-रमण रोहिणीजीवितेश ५ महानरेश ६ परदुःखैक-महासिन्धु-सम्मुत्तार-यान-पात्र ७ उपलक्षितविद्या--गुण-पात्र ८ अनणु-गुणि-जनगुण-मनो-मानस-राजहंस ९ मलिक-माफरेन्द्र श्रीपुंजहंस-कारिते श्रीईस्वर-सूरिविरचिते प्राकृत-बन्धे पुण्य-प्रशंसा सम्बन्धे श्रीललिताङ्ग-चरित्रे रासक-चूडामणौ ललिताङ्ग-कुमार-विपदुच्छेद-पुष्पावती-पाणिग्रहण--राज्यार्ध-प्राप्ति-वर्णन-प्रकारो नाम तृतीयो-ऽधिकारः ॥३॥ गाथा अह अन्नया कुमारो, वायायण-संठिउ स-लीलाए । कव्व-कहाइ-विणोयं, कुणमाणो सह कलत्तेणं ।। ३५१ जा चिठइ ता पुरओ, पासंतो निवय-दिट्ठि-पसारेण । नयरं सव्वमपुव्वं, तत्थेगं पासए दमगं ॥ ३५२ ॥ पद्धडी आजाणु-रुलंत-पलंब-केस, लिल्लिरिय-गणाहिव-सरिस-वेस । गलियच्छि- नास-वीभच्छ-रूव, घण-घट्ठ-पंडु-नहरोम-कूव ॥ ३५३ बुहषाम(?)पयंड सिर-जाल-माल, मुह-कुहर-ऊअर-कंदर-कराल । मल- मलिण देह-दुग्गंध-गंध, वण-सूई-पूइ-बहु-पट्ट-बंध ॥ ३५४ दीणंग- खीण-घण-जणय- घोर, अहिणव-किरि जाणि दुकाल-रोर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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