Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 91
________________ [78] उत्तम-जण-नयण-सुदिन्नि-रिक्ख, खप्पर-करि घरि घरि लिंत भिक्ख ॥३५५ पक्खालिय-पइं-पब-पीण-पाय, असरिस-जण-निंदिय-रीण-काय । बहाचा भावह दुक्ख-सेस, उद्धरिय कि नारय-पिंड एस ॥ ३५६ उवलक्खिय एरिस-रूवमित्त, ललियंगकुमर सुपवित्त-चित्त । मणि-चिंतइ हा हय-विहि-विलास, जिणि कारिय सुरवर कम्मदास॥३५७ नर घडिय सुघड विहडइँ विहत्त, अणजोडिय जोडइँ जुत्ति-जुत्त । तं करइ देवनर चित्ति जेउ, नवि बुज्झइं नाणी जीहभेउ ॥ ३५८ इम चिंति कुमर करुणद्द-चित्त, अंसुय-जल-विलुलिय-तरल-नित्त । सुयणत्त-विसेसिहिँ सुयण-नाम, हक्कारइ नियजण पेसि धाम ॥ ३५९ तेडाविय पुच्छइ कुमर-राय, तउँ कवण कवण हउँ मुणसि भाय। इम जंपइ किंपिय तणुभयत्त, सु जि सुयण सुघिणिघिणि-सद्द-जुत्त ॥ ३६० निन्नासिय तम-भरपूरसूर, नवि जाणइ उग्गिय कोइ सूर । बहु-नरवइ-नामिय-सीसईस, कोइ अच्छहि बहुगुण तउँ खितीस ॥३६१ हउँ रंक रोर-भर-भरिय-देह, सिउँ पुच्छसि नरवइ वत्त एह । तव बुल्लइ कुमर न भणसि सच्च न, अज्ज-वि जइ तउ मुझ एह वच्च ॥३६२ नवि धरउँ हणउँ नवि कहुउं किंपि, जिम अच्छइ तं- तह-सव्व जंपि ॥ नवि जाणउँ सामिय किंपि तत्त, तव बुल्लिउ कुमर-नरिंद वत्त ॥ ३६३ वण-भिंतरि अंतरि ईस-साखि, तिहँ धम्म-अहम्मह विगति दाखि । उवयार-सार तइँ किद्ध सुयण, लिद्धाँ ललियंगकुमार-नयण ॥ ३६४ तउँ हुइ सुयण हउँ कुमर तेउ, मिल्हिउ वण निब्भर रयणि जेउ । इम सुणिय सुयण तसु वयण जोइ, उलक्खिय अहो-मुहि दुहिउ जोइ ।।३६५ कुंडलिया अह ललियंगकुमार तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ । अवगुण किद्धइ गुण करइँ गरुआ एह सहाउ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114