Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[82] तासु वयण-रसि जाणि कि वूठउ मेहुलउ । जइ वि कुमर मन-मोर महा-रसि तंडीया फुणिहाँ अइ तावि सरल-कुमरेण कुसंग न छंडिया ॥ ३८५
ग्रहीत-मुक्तक-आलिंगनक छंद अथ अन्नदिणम्मि मणम्मि वितक्किय किंपि छलं छल-सेस-विसेस-गवेसण दुज्जण सुयण-नरं । नर-राय सु पुच्छिय निच्छिय एम सु-पेम-परं पर-लोय-विवज्जिय देस-मसेस कुमार-गुणं ॥ ३८६ गुणियण-जण-संगय संगइ केम कुमार तुअ तुअ सत्थि महा-सुह-संपइ कारणि कवणि हुअ । हुअ जम्म सुरम्म कुमारह किणि पुरि कवण कुलि कुलवंत सु आखित दाखित सुह मह कहिय वलि ॥ ३८७ तव बुल्लिय सज्जण दुज्जण वयण विरासजुअं महराय म पुच्छसि वंछिसि जइ बहु आय-सुहं । मणि संकिय ताम नरेस विसेसिहिं दुट्ठ पुण लहु जंपइ सुयण ति सामिय कामिय ईस सुणि ॥ ३८८
गाथा इक्कतो तुह आणा, इक्कतो कुमर-राय निस्सेहो । इअ जह पवित्ति कहणे, अहो वियडसंकडं मज्झ ॥ ३८९ तह वि हु बहु हेअ नरेसर, सिरिम महिंद नंद चिर-कालं । जह तह कुमार-चरियं, अच्छरियं पुण सु मह एयं ।। ३९० सिरिवास-नयर-सामिय, नरवाहण-नंदणो अहं देव ।। अम्ह घर-कोरियस्स उ, सुओ महाराय एस लहु ॥ ३९१ पगईए रूव-गुणो, कुत्तो च्चिय पत्त-बहुल--विज्जधणो । निय-कुल-तवाइ-गेहं, चिच्चा देसंतरं पत्तो || ३९२ इत्थागयस्स तस्स य, नरवर तुम्हाणुरागजोगाआ । पुव्वज्जिय-पुण्णेणं जं जायं तं तए मुणियं ॥ ३९३ ॥ विशेषकम् ।।
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