Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 93
________________ [80] मन मोट जिके लाण, आगह हरिचंद सति नाऊण निउण-मईएँ पयंपए पइ पई एवं ।। ३७५ रोडिल्ला सुणउ प्रीतम प्राण-आधार, विद्या-कला-भंडार, रूपि जिणि जीतउ मार, सयल गुणं ।। प्रेमपीरति-पियारे सांई, तुम्ह तणा हित तांई कहु वात एक काईं सणेहि घणं ।। इह दुयण सुयण-नाम, रहइ नितु तुम्ह धाम, करइ सदा सहु काम, अवि सुयणं ।। इम जंपइ रायकुमारि, प्राणि प्रिय अवधारि, मन शुद्धि-सुं-विचारि, अम्ह वयणं ॥ ३७६ मोटा मोटा जिके रायराण चऊद-विद्या-निहाण, बहुतरि-कला-सुजाण, आगह हुआ । नल विकम भोज भूपति हरि हरिचंद सति, हय-गय-रह-पत्ति-पायक-जुअ । छांडिउ छांडिउ तेहे नीचे संगः, पतंग-सरिस-रंग, छेहि दाखइ निय अंग, बहुअ-जण । इम जंपइ रायकुमारि ।। ३७७ जिम सुणीइ आगइ सरूव, हंस-रूव काय भूवि हिणिय हसत भूव, जंपंत बुहं । इम ताहुं काय महाराय, भणीजु सु पंखिराय, नीच-संग-सुपसाइ, पामिय दुहं । तिम बीजउ ई जिको-वि मुद्ध दुयण-संगति-लुद्ध धवलति सहु दुद्ध, जाणत घणं । इम जंपइ रायकु गारि ॥ ३७८ वरि भलउ वणि निवास, पर-घरि कम्म-दास, विसहर-सुउँ संवास, बहुअ वरं । वरि भलउ विस-आहार, जलंत-जलणि चार, उवरि खडग-धार चाल वरं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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