Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 89
________________ [76] ओं ओं मंगल संख-सबई, धो धो धपमप-मद्दल-सदं । भां भां भेरि भरर-भांकारं द्रुमम द्रुमम दुडबडिय अपारं ।। ३४२ दुडबडिय अपारं दो दों कारं झागडदगि झल्लरि-कंकारं वर-वेणु-सुवीणं, नाद-पवीणं सुर-नर-पन्नग-संलीणं । तल-ताल-कंसालं झाक-झमालं कलरव-पूरिय-भुवणालं महमहत-कपूरं मृगमद-पूरं कुंकुम-चंदण-पंकालं ।। ३४३ भोयण-भत्ति-जुगति-अनिवारं, कप्पड-कणय-दाण-सिंगारं । पोसिय-सयल-सुयण-जण-वग्गं समय-समय-वर-तंत-सुलग्गं ॥ ३४४ वर-तंत-सुलग्गं कुमर-वरग्गं वहुअर-करि-कर-संलग्गं मंगल-जयकारं वार-चियारं चउरिय-बारं चउ-बारं । हुअ-वरसुर-सक्खं जोसिय-दक्खं वेस-वयण-घण-अक्खंतं इम हूउ वीवाहं सयल-सणाहं बहुअ-उच्छाहं दक्खंतं ॥ ३४५ स्रग्विणी बहुअ-उच्छाह नरनाह जियसत्तुउ । सहु-सयण-सहिय तत्थेव संपत्तउ । दिअइ रज्जद्ध कुमरस्स कर-मोयणे पत्त-बहु-लोय-कोऊहलालोयणे ॥ ३४६ देस-दल-सेस-बहु-गाम-पुर-पट्टणां खेड तसु रेड रयणाइँ आगर घणा । गय-तुरिय-साहणा पुव्व-रह-वाहणा बहुअ-धण-धन्न-भंडार भंडह तणा ॥ ३४७ बहुअतर-राय-पायक्क-परियण-जणा पुण्ण-सोवण्ण-रुप्पाइ-कुप्पं घणा । सत्तभूपीढ... ... बहु-मंदिरा घण-कणय-रुप्प-रत्थाइँ अइसुंदरा ॥ ३४८ एम सत्तंग-रज्जद्ध-रिद्धि-जुउ पुव्व-पुण्णेण सिरिवास-पुर-निवसुउ । पुप्फवइ-जुत्त-नर-भोग कलमाण ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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