Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 88
________________ [75] नरा अणेग बहु विवेग जयसु देवि इंदिरा ॥ ३३४ कलश षट्पद जयसुदेवि मंदिर राय - कुल हर वर-दीविय | जय ललियंग-दिणेस -पाय-कमलिणि-संजीविय ॥ जय धारणि धर कुच्छि रयण बहु-गुण- गण - खाणिय । जय सुरसुंदरि रूवि भूवि भोगिंद सुमाणिय ॥ जय जय भणत इम बहुअ जण, नयण- कमल विहसिय कुमरि । श्रीवास- नयर, वर-- राय-सुअ वरिउ वीर वामंग - वरि ॥ ३३५ गाथा अह सयलो निवपुर जण - वग्गो लग्गो कुमार- पयमूले । कर--कमल-मउल-हत्थो, विण्णत्तिं कुणइ पुण एवं ॥ ३३६ सामिय निय जण - कामिय- कप्पदुम कय- कयत्थ - निय- रज्जो । पुप्फाई पुत्तीए पसीय पाणिग्गहेण समं ॥ ३३७ छंद इम पत्थिय ललियंग - कुमारं, हक्कारिय- बहु- जण --संभारं । मंडिय- मेह- महा- झड़ जंगं, पमुइअ - सजण-मण- बहुरंगं ॥ ३३८ त्रिभंगी बहु-रंग- सुरंग कारिय-चंगं चंपा - दंगं सयलंगं बहु धयवड फार तोरण- सारं नरवइ - बारं सिंगारं । दिज्जंत - सुदाणं घण- सम्माणं विहलिय-- माणं किविणं-जणं जियसत्तु - नरिंदं धरिआणंदं कयसुच्छंदं सुयण - मणं ॥ ३३९ कारिय- पुप्फावइ - सिंगारं, सिणगार (रि)य ललियंगकुमारं । चाड गरि धरि सरि छत्तं, बिहुं पखि चमरढलंत संजुत्तं ॥ ३४० चामर- संजुत्तं नव-नव-पत्तं नव-नवरस - भरि नच्चतं । जय मंगल- सदं बिंदिणिवद्दं हय-गयरुह-भड - संमद्दं । पहिरिय- नव- वेसं सुगुण-निवेसं सयल - नरेसं सह पेसं रामा रसि रासं बहुअ - उल्हासं धवल - सुभासं दित- रसं ।। ३४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only S www.jainelibrary.orgPage Navigation
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