Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 82
________________ [69] तं तह-वि तासु सिंगार वेस वण्णवि सुविसेसि हि गुण असेस ॥२८१ अडिल्ल जसु कम-कमल विमल-कमलुप्पम उरु ऊरत्थल रंभ-थंभ-सम । तणुतरु-साह बाहु किमि दिप्पइ मिउ मिणाल मच्छर-भरि जिप्पइ ॥२८२ गगनगति (= हरिगीत) जिप्पंति कणय कि कुंभ थणहर हार निम्मगि सोहए कडि-लंक किरि हरि कणय-किंकिणि--नादि तिहुअण मोहए । मज्झंग खीणि कि पीण उरवर भमर भोगि कि भंगिया । बहु हावि भावि कि रमइ नव-रसि नवल परि नव-रंगिया ॥२८३ वदनक रिमिझिमि रिमिझिमि नेउर-सद्दहिँ किरि अणंग निस्साण विनद्दहिँ । चलंती चतुरंग चमू- बलि मंडइ मयण महा-रसि रइ-कलि ॥ २८४ कलियलइ कोइल जेम कलरव हंस-गइ मय-लोअणी कलकीर नासा-वंस निरुपम कुसुमसर-भर-भोइणी । दिप्पंति अहर पवाल-कुंपल दसण दाडिम-पंतिया मुह-कमल विमल कि पुण ससहर कमल-कोमल-कंतिया ॥२८५ कर असोग-नव-पल्लव-समसरि कुंकुम-करल-लोल अंगुल वरि । कररुह कंति तत्वतर तंबह सम सरीरि करवीर कि कंबह ।। २८६ गगनगति (= हरिगीत) करवीर-कंब कि कंबु कंठिय सवण सर हिंडोलया । चलवलंति कुंडल चंद-रवि-जिम पहिरि पवर सु-चोलया । कडि कसण कंचुअ कवच काम कि भमुह गुण-कोदंडीया तिणि वेधि सरसरि समरि सुरनर कवण किवण न खंडिया ॥ २८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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