Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 80
________________ [67] गंगेटि गुल्ल गिरिणी गुरुअ, जाहि जूहि जाई-फलइँ जासूअण झींझ बहु झाडि तिहँ भयह भीय रक्किर टल' ।। २६६ टिंबरु ताल तमाल तार तालीस तगर पुण दाडिम दमणउ देवदारु दक्खह मंडव घण ॥ धामिणि धव धाहुडी धनेड बहुनामिहिँ तरुवरु नाग साग पुन्नाग चंग नारिंग सु-फल-भर ।। पड्डलय पारिजातक पवर, पिष्फलि पिंपलि साखि सहु फोफलि सुफांगि-कूड फणस, बल बीलि बोरि बाउलिय बहु ॥ २६७ बीजउरी बहुफली भंग भल्लातक भंगिय मिरिच मयणहल मरुअ मुंज महु मुरुडा सिंगिय ।। राइणि रोहिणि रयणिसार रत्तंजणि रासमि चंपक चारु लवंग हिंगु हरडई समि सीसमि ।। वड वरुण वउल वउल सिरिय, किरि वसंत संपइँ वरिय नवनवइ भारि वणसइ तिहाँ, बहुअ सु-फल-फुल्लिहिँ भरिय ॥२६८ चालि इम भमइ ते वणसंड, मय-मत्त गय वण-संड।। बहु वाघ वि रुहुअ सीह, तिहँ फिरइ अकल अबीह ॥२६९ तिहाँ घूअ घू घू सद्द, सुणीइ ति किन्नर-नद्द । वासंति महु-रवि मोर, कल कीर चतुर चकोर ॥२७० कोइल सु-कलरवि राग, आलवि पंचमराग । अहिणव कि वरसइ मेह, संभरइ पंथिय गेह ॥२७१ महमहइ मलयसु-वाइ, बहु-गंध चंपय जाइ। गिरि झरई निर्झर वारि, जाणीइ सर तरवारि ॥२७२ इम थुणि वणि ललिअंगि, बहु रयणि वड-तीड-संगि। सुत्तइ सुणिउ नर-सद्द, भारंड-पक्खि-विवद्द ।।२७३ पद्धडी इत्थंतरि तसु निग्गोह-ठामि, बहु मिलिय पक्खि भारंड-नामि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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