Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 76
________________ [63] तउ इम जाणी- नइ रहीइ संतोसइँ। जे सुह संतोसइँ ते नहीँ बहु सोसइँ ॥२४६ चालि इम चिंति चित्ति कुमार, रूपिहिँ कि अहिणव मार । नवि करइ एह विवत्थ, मुं पडिय इसिय अवत्थ ।।२४७ पहिरतु जे पटकूल, ते वसइ वणतरु-कूल । माणतु जस वरपान, करि धरइ ते वड-पान ।।२४८ जसु वेणु वीणसुराव, ते सुणइ पक्खिय राव। करतु कुतूहल-केलि, सु जि फिरइ विचि वन-केलि ॥२४९ देखतु नाटक-रंग, देखइ न ते निय अंग। चडतु जि चंचलिवाहि, तसु अंगि आहि कि वाहि ।।२५० करतु जि कर करवालि, ते करइ करि करवालि । सूतउ जि सेज-पलंक, सु जि रडइ जिम जगि रंक ।। २५१ रमतउ जि हय- वाहियालि x x x x x बिसतु चाउरि चंगु, बिसइ सु तरु-सट्टंग ।।२५२ वज्जंता ढुल्ल मृदंग, सु जि पंडु पंडु मृदंग। सुणतउ जि जय जय बुल्ल, सु जि सुणइ वायस-हुल्ल ।।२५३ जसु माण दितु भूप, सु जि चक्खु हुअ मरु-कूव ।। इम दुक्खि दुहिलउ होइ, ललिअंग नयण-विजोइ ॥२५४ इति श्री विद्या-कल्प-वल्ली-महानन्द-कन्द, प्रणतानेकराय-वजीर-नर-नायक-मुकुट-कोटि-घृष्ट-पादारविन्द श्री--श्रीभालीवंशावतंस, अनेक-सुविवेक-छेक-छत्राधिपति-महानरेन्द्र-कृत-प्रशंस कूर्चाल सरस्वती बिरुदधर, पुरष-रत्न-वर षट्दर्शनीगुर्वाशाकल्पितानल्प-दान-कल्प-द्रुम, अगण्य-दान-पुण्य-प्रसारनिर्जिताशेष बलि-कर्ण-विक्रमार्क-भोज-प्रमुख भूपाल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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