Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 67
________________ [54] द्वितीय अधिकार (१xxx -२५४) ललितांग-सज्जन-पाप-पुण्ण-प्रशंसाभिवाद-ललितांग-दुखावस्था-वर्णन .अत्थमण मत्थ दिवस बलो। रयणबल वसग्ग सुद्दा, अवि तारा विप्फुरंति जए ।। १५१ समय-वलाओ काले, अहम्म-करणं सुहावहं होइ। तस्स बलाभावेणं, धम्मोऽरम्मो हुइ असुकओ ॥१५२ अडिल्लमडिल्ला धम्मवंत तुअ एह अवत्थह, छंडि कुमर तिणि धम्म विवत्थह । समय एह तुअ करण अहम्मह, अज्जि बहुल धण करण अहम्मह ॥१५३ कुमर भणइ सुणि सुयण सुपावह, वयण सुणउँ नवि एह सुपावह । वलि वलि बुल्लि म अलिय सुपावह, जं धम्मिहि खय जय पुण पावह॥१५४ धम्म करताँ जित्त न होइ, जि तिहँ अंतराय फल कोइ । किं न होइ खज्जंताँ सक्कर, दसण-पीड विचि आविइ कक्कर ॥१५५ नाय-सरिस अज्जिज्जइ लच्छी, तं नियाणि जिम होइ कुलच्छिय । परतिय-पेम जेम जसु अज्जण, कुल-कलंक अवजस जण लज्जण ॥१५६ सुन्नरानि-रूनउँ कुण कज्जिहिँ, कज्ज कि कलियलि किज्जिहि । गाम-बुड्ड नर पुच्छउ कोइ, भंजई वाय नाय गुण केइ ॥१५७ जउ इम कहइ पुण जगि रूडउँ, तउ तइ लवीउँ सहू जं कूडउँ। तासु पाव छुट्टण छल दक्खउँकरिसि किसुउँ पणि झुणि तुअ अक्खउं॥१५८ सुयण भणइं सुणि नरवर-वंदण, अम्ह वयण सीयल जिम चंदण । भल्लउँ भणिउँ मुझ पण इम जांणउँ, हुं सेवक इणि भवि तुं राणउ ॥१५९ जइ विवरीय वयण इह सामिय, तउ तुं निच्च भिच्च हुं सामिय । इम विवदंत पत्त इक गामिहिँ, भुंछ लोय फल हणिय कुठामिहिं ।।१६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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