Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 71
________________ [58] संपइ जसु हरिस न होइ चित्ति, विहलिय-वेलाँ नवि सोगदित्ति । रण संकडि लिइ नवि पुट्ठि घाउ, जणणी जणि परिस पुरिस-राउ ॥१८७ दूहउ जिणुणा जिणा म गव्व करि० ॥१८८ सीहिणि एक जि सीह जिण छ० ॥१८९ पद्धडी लिउ सुयण तुरंगम एह तुज्झ दिउ देव सेव-आएस मुज्झ मुझ जाउ मल जिम सहु असार, रहु रस जिम सम-दम-सत्त-सार ॥१९० इम कहिय सु अप्पिउ तुरय तासु, पुट्ठिहिँ थिउ कुमर सु जेम दास । चल्लंतउ चंचलि चडिउ सोइ, हठि हसइति पच्छलि जोइ जोइ ।। १९१ मिल्हंतउ जे नवि पुहवि पाउ, बिसतु बहुअ-विचि-जमलि राउ। पहिरतउ पटंबर पवर चीर, सुहसयण सेज वामंग वीर ।। १९२ माणसु अडागर बहुअ पान, गावताँ सुगायण गीयंगान । करताँ बहु-मग्गण जय-सुसद्द, वज्जंता ढोल्ल-नीसाण-नद्द ॥ १९३ चडतउ वरचंचलतर-तुरंगि, नच्चंताँ निउण नव पत्त रंगि। चालंताँ चतुरतर पत्ति-घट्ट, हीसंताँ हिसिमिसि हयह थट्ट ॥१९४ तिग-चच्चरि-चउ वट-जूअ-ठामि, इम रमतु जे लइ कुमरनामि । ते पिसुण-पुट्ठि पुलतउ पलाइ, जं करइ दैव सु जि होइ जोइ ।। १९५ षट्पद यतः-किणिहि कालि वर तुरय मिल्हि चडीइं सुखासणि० ॥१९६ गाथा अणुधावमाण-कुमरं, मग्ग-समावेस-सेय-मल-विगलं । पच्चारतो पइ पइ, पभणइ सुयणो पुणो एवं ।। १९७ किं कुमर तए दिटुं पच्चक्खं धम्म-पक्खवाय-फलं । तो अज्ज--वि चय चाहिय, धम्मस्स कयग्गहं विहलं ॥१९८ वंचसु लोगे वहबंधणेसु मा कुणसु किवं किवालुव्व । नो अस्थि कत्थवि तुमं, को अन्नो जीवणोवाओ ॥ १९९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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