Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[53] इम भणइ सुत्तमुत्तावली, एरिस, सुपुरि[स]-चरिय वर ॥११६
गाथा सुपुरिस-चरिय पवित्तो, कवडुज्झिय-सत्तु-मित्त-सम-चित्तो । अणुगय-वच्छल्लाओ, न निवारइ तं तहा कुमरो ।।११७ जं जेण कियं कम्मं, अन्न-भवे इह-भवे सुहं असुहं । तं तेण भोइअव्वं, निमित्त-मित्तं परो होइ ॥११८ अह तेण कारणेणं, कुमरो पुच्छेइ तमणुगय-भिच्चं । साहसु सुह-पंथ-कइ, कमवि कहं सवण सुह-हेउं ॥११९ ता झत्ति सुयण नामो, निय सहज-गुणाउ वियरिय-विराडो । जंपइ कह देव तुमं, कि पि वरं पुण्ण पावाओ ॥१२० ता सहसा ललियंगो, विम्हिय-हियओ सुवज्जरइ एवं। रे मुद्ध मूढ तुमए किं भणियं भुवण पयडमिमं ।१२१ अबला-बाल-गुआलय-हालिय-पमुहाण जं फुडं लोए । जं धम्माउ जउ पुण, खउ तहा णव पावाओ ॥१२२
दहा सुयण पयंपइ सच्च पुण, जे मूरिख देव (?)। पिण धम्माधम्मह तणां, कहि किम जाणइ भेव ॥१२३ कुमर भणइ सुणि रे सुयण, वयण अभिय मि मुज्झ । जं तुझ आगलि फुड कहउँ, धम्मह एह जि गुज्झ ॥ १२४ जीव-दया जिण-धम्म पुण, उत्तम-कुलि अवयार । सुह-गुरु-चरणकमल वली, दुल्लह रयण चियारि ॥१२५ पुण्य-हीण जे जगि पुरिस, पुण नवि पामई एह । रज्जु रिद्धि सहु सुअणजण, रूव-रमणि गुण-गेह ।। १२६ सच्च-वयण गुरु-भत्ति पुण, नइ दुत्थिय-जण-दाण । धम्म एह जिणवर तणउ, बहु-फल फलइ अमाण ॥१२७
यतः धम्मेण धणं व ० ॥१२८१ १. १२९थी १५१नी गाथाना पूर्वार्ध सुधीनो खंड नथी।
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