Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 32
________________ [19] दूहउ कह आया कह आविस्यां, वहिला सज्जण-वारि । नाऊं वलि वलि होइसइ, हंस कि वायस सारि ।।१०९ दूहा छोटडा ए सहुअइ जाणियइ, पुण कीजइ काहु । वाहउ न फबह जइ किरि, वार सहस दस वाहु ॥११० जे अछई अम्ह कुलदेवी, ते लक्षणि अतिगाढइ । अणपूर्छि वे वातउ, घर बाहिरि काढइ ॥१११ चालि तउ पूछवा लागी इम सायर संभाली, राति-समे बेहु पहोरे एक आवे बाली ॥११२ जिम चंद्र सूर्यनां मंडल, तिसां कानि कुंडल माथइ रत्नमइ-खचितु सुवणमइ मउडु ॥११३ जु अंधारा- स्यउं धाई मांडइ, आदिशक्ति महामाया वच्छ हुं कांइ समरी, कोइ अरणावइ वयरी ॥११४ मोडु मोडोधां, लोचनु देउं आंधां दुष्ठ दमुं, त्रिभुवन भमुं ॥११५ चाचरि चउसठि-स्यउं चउपट रमुं, अपराध न खमुं छांडउ लाज, भणु काज ॥११६ कहुं ते परमेसरी, तउं दारिद्र-गज-केसरी जेह तूठी, तीहं अमी चार वूठी ॥११७ जीह कीधउ कु-पसाउ, तीह फेडिउ ठाउ सांभलि स्वामिनी कुलदेवी, घरे आव्यउ विहलउ बहिनेवी ॥११८ पडियउ छइ अपाइ, जउ काई अपाइ, तउ ऊधराइ तीण खेवि, भणइ देवी ॥११९ काउं तई भलु, पुण-नु ऊपार्जता गाढउं दुहेलुं धन-पसाइ कीजइ चंगा, धण-हीणा नीठइ ते रुंगा ॥१२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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