Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 31
________________ [18] सोहग-निहि गंभीर, विहुरि पुण न हवइ कायरु संतिसूरि इम भाइ, सयल - गुण संपइ- सायरु ॥ १०१ सिलोग कंद-मूल-फलाहारो, दारु व्व गुण-बंधुरो | उम्मग्गे पवट्टेइ, सायरो पक्ख - निम्मलो ॥१०२ सयासिगई (?) नूणं, सत्तासो सूर - सन्निहो ! मास चारण-रासिं-वा, पत्तो गयपुरं पुरं ॥ १०३ सालया तस्स चत्तारि, कीडंता मालिओवरिं । आइतो पंथिओ तेहिं, पिच्छिओ सायरो समं ॥ १०४ घात धूलि - धूसर देहु, धूल-धूसर पहसंतु, करवत्ती जेट्ठिय करि, मलिण-वसण विहिव सिण दुक्कइ । लिल्लरिय गणवइ सरिसु, सीसम चीर- चीरिय फुरक्कई । फट्टिय तुट्टिय वाणही, भारिय मेल्हड़ पाय सायर - समुह म चल्लिय, तक्खणि च्यारइ भाय ॥ १०५ दूहउ जर निद्धणु तो सयणु जणु, सलहिज्जइ महि - लोइ । निकलु निउ वि बीय-ससि, पूइज्जतउ जोइ ॥ १०६ गाहा पावरणं विणएणं, भइणी - दइयं दइयं (?) घरंगणे नेत्तुं । न्हाणइ भत्तिए पुव्वं, वत्तं पुच्छंति (भाई) (?) ॥१०७ घात कहि लच्छिहिं, कहि लच्छिहिं, गमण-वित्तंतउ तउ साल इम भणइ, अज्ज अम्ह जसु जगि वदीतउ भणिवई विहलियउ, जइ रि अम्ह घर- बारि पत्तउ । जम्मु सहलु अज्ज जि हुअउ भरिउ सुकिय- भंडारु अज्ज लच्छि सुकय च हुय जउ किज्जइ उवयारु ॥ १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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