Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 61
________________ [48] पिय माय भाय जाया, जायाइँ जणाण ताव सम्मा । जा विप्फुरइ सुवित्तं, विउलं विउलालए नियए ॥६५ वित्तं पि तम्मि काले, विहि-वसओ वसणढुक्किए पुरिसो । गय-तेयं पिव पुरिसो, पडिभासइ जह य इंगालो ॥६६ ता पुत्त नियय कुल-रज्ज-सार-निव्वाह-खम-गुणं । (सुगुणं) साहारणं समाणं, समायरसु सव्व सुहकरणं ॥६७ अह सुणिय राय-सिक्खं, कुमरो चिंतइ हियय-मझमि । धण्णोहं पुण्णोहं, जेणमिमं सिक्खए ताउ ।।६८ गुरु-पियर-सिक्खणाओ, नत्थि परं अमियमिह जए पवरं । तस्सोपेक्खा सममवि नत्थि परं कालकूड-विसं ||६९ दूहा एक नियजणय अनि वली, सिक्ख दीइ गुरु जेम । संख अनिइ खीरइ भरिउ, इक सुरहउ नि हेम ॥७० अमिय-रसायण-अग्गली० ॥७१ वस्तु इम पसंसिय, इम पसंसिय, पुज्ज पिय-पाय, रायहँ घरि रमलि-रसि, रायहंस-समवडि कुमर हरि, तिगि चच्चरि चहुटइ रमइ, भमइ खिल्लइ सुपरि परियरि तणु वियरण-वसि वित्थरिउ, पुणु झुणि तसु अववाउ मुहि तिन्हा बुंठा परइ, मग्गण एह सहाउ ॥७२ अडिल्ल मग्गण जण जंपंति कुमरवर, तुअ सम कोवि नहीँ जगि नरवर । दाणि दलिद-डारण दाणेसर, अढलिक अकल अंगि अलवेसर ।।७३ हाटक अलवेअर अणुपम अवनि अनग्गल अचल-दाण गुणवीर, जसु कर किरि अंब सदा-फल कलरव मग्गण कोइल कीर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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