Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ [ 17 ] रासउ कंथारि कउट्टि कंकाह कीर, कंपील कडह करपट करीर | कालुंबरि कलि कृतमाल किंब, करमंदिय कुंद केयइ कुटुंब ॥ ९१ किंकिल्लि कसंदय कंचणार, कणवीर कुड्य करणीय कल्हार । कलकेलि कमलि केसूय करंज, रलू अरडुसय अह अरंज ॥९२ अक्खोड अगत्थिय तरुअ लिंब, उंबर जंबीरय अंब जंब | बल बील बोल वाउलिय बोरी, बीजउरिय खयर खारिक खजुरी ॥९३ वड वरुण वडल वेडल लवंग, गंगेटि गुल्ह गिरिणिय कडंग | जाइफल जाइ जूहीय अपार, दाडिम दुम दमणा देवदारु ॥९३ नारिंग पूग पुन्नाग नाग, रासि मिसिमिसी सिम फणस साग । सेवंतिय सिंबल सिरिस साल, पिंपल पसरई वनि सिविनि - जाल ॥९५ नालेर सोहंजण सिंदुवार, राइणि रत्तंजणि रयणि सार । हिताल ताल तालीस तार, मीणहल मिरच मंदार चार ॥९६ चंपय मुचकुंदय चंदणाई, जिणि सरि परि पसरई परिमलाई । तस निम्मल जलि अंघोलि देइ, संजोअर सायरु तव रसोइ ॥ ९७ भोयह कज्जि उवि जाम, मणि एहु भावु उप्पन्नु ताम । इग- चित्ति दाणु जइ जइ दिवाइ, ता संपइ संपइ जिम न जाइ ॥ ९७ सोहग्गु न पामइ दाण- हीणु, विण-दाणु गयंदु वि रुलई रीणु । इणि परिचितइ सरह पालि, संपत्तउ मुणिवरु तीणि कालि ॥ ९८ गाहा वित्तं तो न हु पत्तं, पत्ते पत्ते न सुंदरं चित्तं । चित्तं वित्तं पत्तं, पामिज्जइ बहूव - पुन्निहि || १०० कुंडलिया सायरु निरसणु चलिओ, मुणिवर दिद्धउं दाणु । परत्थु (?) भंजण दुह- सहण, गरुआ एहु प्रमाणु गरुया एहु प्रमाणु, जाणपणि जगि अधिकेरा । आणि पीड सहंति, दुक्ख टालंति अनेरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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