Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[45] अइ दाणिहिँ बलि घल्लिउ पयालि, अइ- माणिहिँ कौरव-खय अगालि । अइ- लोभिहिँ लंकापति- विणास, सुर-दाणव-पति पय नमइँ जास ॥३६ अइ वज्जिय देवहिँ गीय-नट्ट, ए पयड पहुवि गि नीइ-वट्ट । जं लहइ लहु-वि पर अप्प-भाउ, ते राय-हंस नर गुरु-सहाउ ॥३७ जं अवसरि दिज्जइ अप्प-दाण, तं लब्भइ पर--भवि फल अमाण । अवसर-विण दिन्नउँ कोडि-मानि, तं जाण विरुनउँ सुन्नरानि ॥३८ अवसर-विण वुट्ठउ घण अणि?, अवसर-विण मिल्लिउ न भलउँ इट्ठ । अवसर विण जे जगि करइँ काम, हे लहइँ परिस-वर मुढ नाम ॥३९
दहा जे अवसर नवि ओलखइं, लखइँ न छेग-छइल्ल । ते नर-रूव निसिंग जिम, अहिणव जाणि बइल्ल ॥४० इम तसु वयण वयण सुणवि, कुप्पिउ नरवइ एम । भाल भिउडि भीसण नयण, फुक्किय हुअवह जेम ॥४१
कुंडलिया चित्ति चमक्किय चिंतवइ, नीइ-निउण-नरनाह जोव्वणए तसु पुत्त पिण, मित्त-सरिस गुण-गाह मित्त-सरिस गुण-गाह वाह जिम मिल्हिय वग्गिहिँ मगा कुमग्ग नवि गणइ नवि नेह सवग्गिहिँ धण-जुव्वण-मय-मत्त रत्त विस-वसण निसंकिय इम चिंतंत नरिंद नीइ निय-चित्ति चमक्किय ॥४२
गाथा जाओ हरइ कलत्तं, वटुंतो वज्जियं हरइ दव्वं । x x x x x x पुत्त-समो वेरिओ नत्थि ॥४३ हक्कारिऊण कुमरं, निय-पिय-पयकमल.. भत्ति- भर-भमरं । पच्छन्नं पुहवीसो, पभणइ महुराएँ वाणीए ॥४४
चालि सुणि सिक्ख कुमर नरेस, तुं अच्छइ सुगुण सुवेस ।
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