Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 57
________________ __ [44] सकल-सरूव-सुवित्तो, दूभिज्जंतो जणेहिँ तं कुमरो । नवि छंडइ जह चंदो कलंकमसुहेण कम्मेण ॥२६ षट्पद कम्मि कीउ दासत्त सत्त हरिचंदि नीच-घरि कम्मि हणिउ हय कंस केसि चाणूर हरण हरि । कम्मि राम गय धाम सीय लक्खण वणि वासिय, कम्मि सीस दस वीस भुअह लंकेस विणासीय । किया-कम्मि चंद सूरिज नडिय, भिडिय कम्मि भारथि सुहड, इम भणइ ईस दीसह दिसां, कोइ समथ वि ण कम्म भड ॥२७ गाथा जं विज्ज अपत्थासी, जमुत्तमो नीय-संगओ होइ । तं पुव्वकम्मजणियं, दुचिट्ठियं सयल जीवाणं ॥२८ अह अन्न-दिणे राया, जायाणंदो कुमार-गुण-तुट्ठो । दिसइ बहु-मुल्ल-हारं, कुमरस्स गले सुसिंगारं ॥२९ दाणं अत्थु पहाणं, किं कित्तिम-भूसणाण भारेण । इअ चिंतितो कुमरो, हार-च्चायं कुणइ सिग्धं ॥३० इय जाणिऊण तुरियं तुरियगईए स सज्जणो विजणं । गंतूण राय-पुरओ, सविसेसं विण्णवइ एवं ॥३१ __ पद्धडी महाराय निसुणि विन्नतिय एग, ललियंग-कुमरवर-गय-विवेग । अइ-टाण-वसणि रत्तउ रसाल, विण-दाण गणइ सहु आलमाल ॥३२ नवि जाणइ पत्तापत्त-भेउ, जं इच्छाँ आवइ दिइ तेउ । विण-धण किम चल्लइ रज्जु-कज्ज, संसारिसु वल्लह अप्प कज्ज ॥३३ जं जीवह वल्लह होइ दव्व, किम किज्जइ वियरण तासु सव्व ।। अज्जिज्जिइ अणुदिणु महादुक्खि, ते मूढ न जाणइ जतनि रक्खि ॥३४॥ कुल विज्जा वाणि विवेग रूव, जीह विण नवि सलहइ कोइ भूव । सब-सरिस पुरिसजीह विण कहंति, जिणि अस्थि अणत्थ सुविलय जंति ॥३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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