Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 34
________________ [21] सुह दुह सहुअइ सहइ सुयण जउ पंधिहि चल्लिय ॥१२८ पत्तउ चित्ति सु चितवइ, महुराउरि- उज्जाणि । विढिस्यइ गिहिणि धुर लगइ, जंतह रितइ पाणि, घरिणि बहु कलहु करेस्यइ दुख-दद्ध पह संत छुहिय भोयणु नवि देस्यइ । कोमल कर पक्खि(?) लियइ, नइ मज्झि वहंतउ । चीर-खंडि गंथिय तयणु, घर- अंगण पत्तउ ॥१२९ पिक्खिउ लिद्धइ भारि, प्रिउ जउ घरणिहि घर-बारि । हरिसिय तउ करवय नयणि, अग्घु दियइ तिह धारि मुद्ध मणरंग रहक्कइ, भारु सीस भत्तार गहिवि घर- भित्तरि मुक्कइ । जोवइ उत्तावलिय, दिट्ठ बंधव- उक्कंखिय । दियइ बहु आसीस, रयण-गण निम्मल पिक्खिय ॥१३० चालि इक्कु रयणु लेइ उच्छट्टि, गई रयण-पारिख- हट्टि । नवलख--मूल कराई, तिणि खेवि तीत (?) अपाइ ॥१३१ जेइ वडउ करइ विसाहु, तिणि गउरविस्यइ साहु । सय-सहस- पाकिहि तिल्लि, तिह दिद्ध मज्जणइ मुल्लि ।। इग तत्ति नीरहिं न्हाणु, पहिरावि वत्थ इकताण (?) । चूडिया चउ चल चालु, सोवन्नु मंडिउ थालु ॥१३३ महमहइ रूडी सालि- सोवन्न, सिली मुग-दालि । छमकाविय वर शाक, नीपजइ अन्न- विपाक ।।१३४ जीमिवा बइठउ साहु, पुणु ऊपन्नउ मनि दाहु । ए रिद्धि इणि किम किद्ध, कइ देवता इह सिद्ध ॥१३५ जइ सहज सीलह भट्ठ, ता अहह देवी घट्ठ । तिय तणउ सिउं वेसासु, सूता जि जोवइ सासु ॥१३६ आगलिय अलीय अणाइ, तिय-चरिय केण जणाइ । जिमव्यउं ग्यउं वीसारि, मणु लग्गु इणि विचारि ॥१३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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