Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 29
________________ [ 16 ] वल्लह - जणु संमिलइ, राज- रिद्धि सत्तंग आवइ जणु जणवइ संपड, पुत्त मित्तु परिवार पावइ || जीवंतां वलि पामियइ, पुहविहि भद्द - सयाई इम धीरा मनि धीरवइ, विहुरि न कायर थाइ ॥८२ मडिल गयपुरि- पट्टणि पिययम गम्मइ, एह वत्त मह पिययम गम्मइ । च्यार सहोवर मुज्झ वसंतय, देसइ दव्वु अणग्ग लु कंतय ॥८३ सायरु भइ निसुणि खामोवरि, किम हउं पंथि जाउं खामोवरि । पामुं पारु केम मग्गंतह, किम किम जीह वहइ मग्गंत ॥८४ हरि हरि देहि अप्पण- कज्जहि, बलि नायरिय लोय मग्गिज्जइ । वसणिहि ढुक्किहि लज्ज न किज्जइ, जिम वज्जइ तिम तिम नचिज्जइ ॥८५ लज्ज होइ जइ विडु मग्गिज्जइ, सा लइ अत्थु तुम्ह सहु जुज्जइ । अह लज्ज उद्धारि करिज्जइ, तो पुण अप्पुणु वसणु हरिज्जइ ॥८६ सीहह सरिसर कोइ न चल्लइ, अब्भड गय- घड हत्थु न घल्लइ । सुपुरिसु सत्थु न संबलु जोवइ, साहसु सत्तु हु इकु अवलोवइ ॥८७ चलि नाह कह अप्पणु हरेइ, हउं जोगवण करितु कणह रे । अम्ह घरि चित भ करि सुमिणंतरि, दिट्टु धणागमु मई सुमिणंतरि ॥८८ दूहउ आलि अलत्तइ आलिहिउ, हियइ जु सत्थिक सत्थि पंथि पलट्टर पंथियह, तहु जि सत्थिउ सत्थिउ ॥८९ घात इकु माउं पिट्ठउ घर - सारु, संबलु ले संचरिउ, पढम दीहि इम चित्ति चितइ, जइ अज्जु जीमिसु किमइ, ताम कल्लि किम करि वित्तइ || इम निरसणु चलंत घ, तिज्जा दीह - वियालि सायरु साहस संमिलिउ, पत्तु सरोवर- पालि ॥ ९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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