Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 27
________________ [14] निय-कज्जि बहलि कराइ, विणु कज्जि टलि करि जाइ ॥५९ पाघडी जसु वरि चीरि, पा घडी सहु न सरीरि । पहिरतउ जे कंथाहि, तसु अंगि आहि किवाहि ॥६० जे पउढतउ चउ बारि, तिह नहिय घरि चउ वारि । जसु वीण वाइ वि दंत, सिय वीण वाइवि दंत ॥६१ जसु कंठि सोहइ माल, सो करइ टाकर-माल । जो दानि भारी हत्थु, तिह हुआ उभारी हत्थु ।।६२ जो भंजतउ जण-कट्ठ, सो जाइ भंजण कट्ठ । जिणि खडह लोपु न किद्ध, नइ-खडह तिणि खडु लिद्ध ॥६३ जसु सीसि सीकिरि होइ, तसु खसर सीकिरि जोइ । जिह चमर विज्जइ नारि, तिह हत्थ घासइ नारि ॥६४ जो सुमाणतउ वर पान, आणइ सु माथइ पान । जिह हुतउ वरु अंबाजु, सोइ जिम घर घरे बाजु ।।६५ दितउ नवपउ पलंक, सु जि फिरिआ वलंक । परखतु जु पाणि हंड- निरखइ सु पाणी- हंड ॥६६ इम दुक्खि दुल्लउ थाइ, सायरु घणउ सीदाइ । तरलच्छि विगय विलास, निरखइ ति रन्नि निरास ॥६७ जे मलपती पयपाल, ते परिभमइ पय पाल । हारडइ जिह मन- खंति, हा रडइ निसि एकंति ॥६८ बपु त कला जिह कानि, तिह तड़ कलइ रुलइ वानि । सिरि राखडी जस सार, तिह करइ कोइ न सार ॥६९ सोवनु कडि जसु सुत्तु, कांतइ सु संकडि सुत्तु । जेह कहियं दद्ध नहिय हेलि (?), ते वहइ नीर दुहेलि ॥७० जे जीमती पकवान्न, ते दुक्खि हुई एक रानि । जिह अहर सुरमा सुरंग, तिह अहर पडी सुरंग ॥७१ करती ज करि भिंगारि, हिव करइ लोभिं गारि । जे पहिरती परवाल, ति राहवइ पर बाल ॥७२ जिय जिम जि मानी साहि, ते रुलइ निकु नीसाहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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