Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi AhmedabadPage 26
________________ [13] षट्पद तरल -- नयग्णि घरि तरुणि, जाम मुह कमलु पलोवइ । मयरद्ध आकण्णु धणुहि, सरु तव आरोवइ जव जंपइ ससीवयणि, महुर-मंजुल मिय- वाणिहि । तव घुम्मंत पडंति, जंत भज्जंत घ बाणिहिं आलिंगण-रंग-अनंत रसि, आसण गतिल्लण लहरि । सायरु झंखोलिउ जग-पयडु, हेमंत- कुंभिणि भमरि ॥५० ( चालि ) न हु एवे पुण विसेसु, न हु करइ किंपि किलेसु । इकु चित्ति कामु रसालु, सहु अन्न मन्नइ (असारु ) ॥ ५१ भोगविय कोडिअ वार, नहु तोइ जाणइ सार । जं जासु हित्यं दि, तं तेण सयलु वि खद्ध ॥५२ वाणुत्त नव-सयाई, धण हरवि भिच्च पुलाई । निहि कलस जोवइ जाम, इंगाल पेक्खइ ताम ॥५३ आभरण सवि विक्काई, घर रच्छ रेहणि जाइ । जइ लच्छि गय सव्वंग, ता हूआ निद्धण चंग ॥५४ दस सहस लइ दीनार, अम्ह बिंबु दिउ सुविचार | अड भंजि जिम तिम आजु, किवि भणई करि निज काजु ॥५५ रयणमउ नाभि - मल्हारु, सायरु भणइ सुविचारु । जिणि अंगि चडइ जु फुल्लु, तिह कवणु किज्जइ मुल्लु ||५६ दूहउ धरसु रलि कुखीवाणिय (?), जो उप्पावर अत्थु । महुरउ महुरा जेम मुहि, परि परमत्थु अणत्थु ॥५७ हिव चालि सुयण ते हु जि गेहु ते नरु हु जि देहु । विणु लच्छि सहु तिम तोइ, वत्त-इ न पुच्छर कोइ ॥ ५८ इकु अप्पणउ नहु लोइ, इकु अत्थु वल्लहु होइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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