Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 24
________________ [11] सकल दीवउ, सकल दीवउ पवर पल्लंकु नवरंग-परियछि ढलियह, सरूव हियई सम तुलाई उसीसई बिहुं गमई, पट्टकूल-ओछाडि छाइय । गल्ल-मसूरय धूवहडि, अगरु बहक्कइ जाइ । मण वल्लहह मेलावडइ, खण जिम रयणि विहाइ ॥३३ नागवल्ली, नागवल्ली- पत्त सुविसाल सालागर पूगवर, खंडिया यं चंदणि रसालिय कप्पूर परिमल-बहुल, खइर-सास-रसि रंगी लालिय । बालिय अहर-अमीरसहि, माहि मिलइ कल्लोलु सायरु सिसिरि समाणयइ, रंगि रयणि तंबोलु ॥३४ चंद-छत्तिहि, चंद-छत्तिहि, सूर-दीवेण । मलयानिल- हयवरिहिं, भमर भट्ट जय जय भणंता कोइल किरि वंसधर, नवल-नाद-मिसि गुण थुणंता । पंखिय चमर ढलंतयह, अवनिअ वासिहि ठाओ जसु हियले श्वेय(?) संतोसयरु संपई ....... ॥३५ गाहा कमलं कमलावासं, दढं सुणिऊण सिसिरकालेण । दइयावराह कुविओ, समागओ माहवो तुरियं ॥३६ पद्धडी नव-नव-भार वणस्सइ, विहसइ विविह-परि सिसिर-सियालु पुलाणउ, रिउ- केसरिहिं डरि । केसुय-सुम चंचुप्पम, पुप्फिहिं रत्तुडिय नाह-समागमि पुहवि कि, ओढी चुन्नडिय ॥३७ कहइ कि कोइल कलरवु, करतिय अंब-वणि जुव्वणु माणउ माणिणि, छंडउ माणु मणि । रुणझुणु भमर भमंतह, कमलिहिं रसु लियइं दियवर वेउ भणंतह, कण-वत्ति कि करई ॥३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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