Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 22
________________ [9] सायरु सधणु सुहिल्लउ हेलि हिंडोलियइ । किंब- कुसुम-धम्मिल्लउ ऊढणि कंबलिय आरत्तिउ किरि सज्जइ गयणिहिं विज्जुलिय ॥१६ गाहा पावस-कालागमणे, झिज्जइ निच्चं पि सायरो जलही । एसो पुण अच्छरियं, सविसेसं रिद्धिमावहइ ॥१७ सरय-रिऊ सुह हेऊ, लोयाणं जणिय-लोयणाणंदं । धण-धन्नेण समिद्धो, संत-व्व समागओ भवणे ॥१८॥ भुजंगप्रयात जया सीयला रेह परियाणि वल्ली (?), मही मंडवे लग्गया तार हुल्लो । फलं वड्डए पइदिणं पुन्निसि, मूलपायम्मि पायालमिंदो(?) ॥१९ सुहा मारुया पीणयंते जणाणं, पिउ निम्मलं निज्झरं नीर-वाणं । नहाभोय-भाए उइओ अगत्थी, मयं पावए निब्भरं भद्द-हत्थी ॥२० सरे घर-घरे चिंदिणी घुम्मयंता, ति-गामीणि उच्छलिर दीसंति मत्ता । मिली पामरी चच्चरी दिति ताली, रलियामणी रातणी, रमइ बाली ॥२१ सरइ चंद- कंती-मणी अमीय-धारा, हरइ माणिणी माण-संमाण-सारा । ससी निम्मलो साहु-चित्तं व दित्तो, इमो एरिसो सरयकालो निवित्तो ॥२२ गाहा दो गंभीरा मज्जाय-पालणा चंदवयणि-रंगिल्ला । न हु सायर-जलहीणं, मुणिज्जए अंतरं किंपि ॥२३ घात सिरिहि भैरव, सिरिहि भैरव, वहइ अरहट्ट अक्खंति दिटुंभु किरि, भरिय रित्त रित्तिय भरिज्जइ । पामेवि संपइ विउल, किवणि किमइ गारव न किज्जइ ।। रिद्धिहि जंत--चलंतियह, लग्गइ खणु न मुहुत्तु । खाउ पीउ विलसउ वसुह, संपत्तउ हेमंतु ॥२४ वासु वासइ, वासु वासइ, वसुह वासेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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