Book Title: Sagardatt and Lalitang Rasaka
Author(s): Shantisuri , Ishwarsuri, Shilchandrasuri, H C Bhayani
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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मरुअउ महि महमहइ, महिल सीसि धम्मिल्ल किज्जइ । जणु वेणी-विसहरह वसण-कज्जि वम्मिय मुणिज्जइ । अह लावन्न-सरोवरह, ओ दिप्पइ सेवालु । करइ अणन्न गेसलउ, तणुतर सिहरि विसालु ।।२५ तिक्खु भोयणु, तिक्खु भोयणु, कडुङ कासाउ तंबोल-रंगिय, अहरु, अइ सुरंग वर चीर पहिरणि । कलयंठि जिम कलयलई,सुरय-गमिणि एकंति तण-मणि गेय-गमक्कि हि छेय-पणि, रे गिहि रयणि रमंति सीलम सायरु स्त्रुहिणु (?), इम हेमंतु गमंति ॥२६
गाहा तेयं सूरस्स हयं, उच्छलियं धूलि-धूमरी-पडलं । हे हेमंत ! न-याणसि, सिसिर-दलं आगयं भुवणे ॥२७ दिवसो कओ न लहुओ, मज्झ पयावो वि इत्थ सिसिरेण । इय संकिओ दिणेसो, सत्तासो भमइ भीओ व्व ॥२८ रिद्धी वि वुमसक्का (?) जडया पिसुणव्व सिसिर-संतस्स । हियए डझंति घणं, पंकुपत्ताण जुत्तमिणं (?) ॥२९ दइय-संदंसणेणं, भमरेण समं रयं रयं जीणं । सिसिरे वि कुमुइणीणं, हिम-दहणं जुत्तमसईणं ॥३०॥
लच्छीहर सुकड्डियं दुद्धयं तिवि वढं किद्धयं, सक्करा-सिद्धयं वल्लही-दिद्धयं । रुप्प- सोवन्न--कच्चोलए आणियं, सायरो सायरो मुंच सो माणियं ।।३१
घात सिंघकेसर, सिंघकेसर, झगर-दल-मट्ठ बीवालय वज्जणय, मुत्तियाय मोयग मुरक्किय सोकुच्चिय संकुलिय, सेव गुणय मंडिय सुपक्किय । सुहालीय दहीथरा, खज्जा सत्तपुडाई धरिय घलहल घीय सउं, घेउर गलल जिमाई ॥३२
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