Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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साधुसाध्वी
॥ ५ ॥
तदुभए, अट्टविहो नाणमायारो ॥ २ ॥ ज्ञानकालवेला मांहें पढ्यो गुण्यो परावत्यों नहीं, अकाले पढ्यो, विनयहीन, बहुमानहीन, योगोपधानहीन, अनेरा कन्हे पढयो, अनेरो गुरु कह्यो, देववंदण वांदणे पडिकमणे सज्झाय करतां पढतां गुणतां कूडो अक्षर कानें मात्रें आगलो ओछो भण्यो गुण्यो, सूत्रार्थ तदुभकूड कलां, काजो अणऊधयों, डांडा अणपडिलेह्या, वस्ति अणसोध्यां अणपवेयां, असज्झाइ अणोज्झा कालवेला मांहिं, श्रीदशवैकालिक प्रमुख सिद्धान्त पढ्यो गुण्यो परावत्यों, अविधें योगोपधान कीधा कराव्या, ज्ञानोपगरण पाटी पोथी ठवणी कवली नोकरवाली सांपडा सांपडी दस्तरी वही कागलिआ ओलिआ तें पग लाग्यो, थूक लाग्यो, थूकें करी अक्षर भांज्यो, ज्ञानवंत ते प्रद्वेष मच्छर वह्यो, अंतराय अ | वज्ञा आशातना कीधी, कुणहिपतें तोतलो बोबडो देखी हस्यो, वितस्यों, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मनपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, ए पांच ज्ञान तर्ण आशातना कीधी. ज्ञानाचार विपड़ओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवस मांहिं सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुआ होय ते सवि हुं मन वचन कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं ॥ २ ॥
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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ ५ ॥
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