Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 17
________________ नहीं, स्थानके रहेतां हरियकाय बीयकाय कीडी तणां नगरां साध्यां नहीं, ओघो मुहपत्ति चोलपट्टो संघट्यो, स्त्री तीर्यचतणा संघट्ट अनंतर परंपर हुवा, वडाप्रतें पसाओ करी, लघुप्रतें इच्छाकार इत्यादिक विनय सांचव्यो नहिं. वय - समणधम्म-संयम, वैयावच्चं च वंभगुत्तीओ ॥ नाणाइतियं तव कोह- निग्गहाई इ चर णमेयं ॥ १ ॥ पिंड विसोही समिड़ भावणा, पडिमाय इंदिय निरोहो | पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहो नेव करणंतु ॥ २ ॥ एवंकारे साधुतणें धर्मों एकविध असंयम, तेत्रीश आशातना, प्रमादपद पर्यंत. मूलगुणउत्तरगुण एकसोचालीश अतिचार मांहिं साधुसमाचारी वि० अ० पक्षि० सु० वा० जाणतां, अजा० हुओ होय ते सवि हुं मन वचन कायायें करी मिच्छामि दुक्कडं ॥ ९ ॥ इति ॥ साधु अतिचार ॥ ॥ ७ ॥ पाक्षिकसूत्रं ॥ तित्थंकरे अतित्थे, अतित्थसिद्धे अतित्यसिद्धे अ । सिद्धे अ जिणे अ रिसी, महरिसी नाणं च वंदामि ॥ १ ॥ जे इमं गुण रयण सायर । मविराहिऊण तिष्णसंसारा ॥ ते मंगलं करिता, अहमवि आराहणाभिहो || २ || मम मंगलमरिहंता, सिद्धा साहू सुअं च धम्मो अ । खंती गुत्ती मुत्ती, अजव Jain Education International For Personal & Private Use Only ainelibrary.org

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