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साधुसाध्वी
॥३७॥
॥ अथ गौचरी के ४७ दोषोंका अधिकार ॥
व प्रतिक्रमण
सूत्र ... सोलस उग्गम दोसा, सोलस उपायणा य दोसा य ॥ दस एसणा य दोसा, गासेसण मिलिय सगयाला ॥१॥ आहा १ |
कम्मुद्दे सिय २, पूईकम्मे य ३ मीसजाए ४ य ।। ठवणा ५ पाहुडियाए ६, पाओयर ७ कीय ८ पामिच्चे ९ ॥ २ ॥ परिअट्टिए १० ४ अभिहड्ड ११ उम्भिन्ने १२ मालोहडे य१३ अच्छिज्जे १४ ॥ अणिसिठ्ठ १५-ज्झोयरए१६, सोलस पिंडुग्गमे दोसा ॥३॥धाई १-ट्टइ२
निमित्ते३, आजीव४ वणीमगे५-चिकिच्छा६ य ॥ कोहे-माणे८ माया९, लोभे १० य हवंति दस एए॥ ४ ॥ पुट्वि-पच्छा संथव,११ विज्जा१२-मंते अ१३ चुण्ण १४-जोगे १५ य ।। उप्पायणाइ दोसा, सोलसमे मृल कम्मेय१६ ॥५॥ सकिय१-मक्खियर-निक्खित्त ३, पिहिय४ साहरिय५-दायगु६-म्मिस्से ७ ॥ अपरिणय८ लित्त९ छिड्डिय १०, एसणा दोसा दस हवंति ॥ ६॥ संजोयणा१-पगाणे२, इंगाले ३-धूम४-कारणे५ पढमा ॥ वसहि बाहिरंतरे वा, रसहेऊ दव्ब संजोगा ।। ७ ।।
अर्थः-साधु-साध्वियोंको १६ दोष उद्गमनके, व १६ दोष उत्पादनके, तथा १० दोष ऐपणाके, एवं ४२ दोष रहित आहार लेना चाहिये और आहार करते समय मांडलीके ५. दोष मिलाकर ४७ दोष निवारण करने चाहिये. जिसमें प्रथम उद्गमन; | याने-आहार बनाने संबंधी १६ दोष गृहस्थोंसे लगते हैं सो बतलाते हैं:-साधु के लिये आहार बनाकर देवे सो पहिला आधकर्मी दोष १, अपने लिये बनाये हुए आहार को साधुके लिये स्वादिष्ट बनाकर देवे सो दूसरा उद्देशीक दोष २, अपने लिये बने आहार को आधाकर्मी आहार के साथ मिलाकर देवे सो तीसरा पूतिकर्म दोष ३, अपने और साधुके दोनों के लिये पहिलेसेही विचार ४॥३७॥
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