Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 85
________________ जनने परचा पूरण, देखी मुज मन हरख्यो || १ || ढाल || हिवे जंबूद्वीपे लाख जोयण परिमाण । दाहिणचर भरतें, काशी देश सुजाण || तिहां नयरी अनोपम, उपमा स्वर्ग समान । वणारसी नयरी, अश्वसेन राजान ॥ उलालो || तोरे ; नयरी वणारसी केरो स्वामी, अश्वसेन राजान । स्वर्ग भुवनमां सुरपति सोहे, तेहने तिण उपमान ।। तस घर घरणि पति मन हरणि, लक्षण अंगे विराजे । रूपे इन्द्राणी बामा राणी, मुख देख्यां शशी लाजे ।। २ ।। ढाल ।। हिवे; वामा राणी, पोढी रयण मझार । प्राणत देवलोकधी, चविया पास कुमार || तीन ज्ञान सहित लियो, वामा कुक्षि अवतार । चैत्र वदि चौथे लाधां स्वप्न उदार || उलालो || तेथी; चउदह स्वप्न देखी मन हरखी, आवे प्रीतम पासे । गजपति चालती हर्ष धरती, इण परे वचन प्रकाशे । चउदह स्वप्न में दीठाहो स्वामी, सेजां पोढी आज । जिम दीठा तिम आगल कहसुं, ते सुणजो महाराज || ३ || ढाल || पहिले गज दीठो, ऐरावण समकंत । बीजे अति सुंदर, वृषभ महा बलवंत । अति लील करतो, तीजे केशरी सिंह । वलि कमले बैठी देखी लक्ष्मी अहि || ॥ उलालो || तोरे; चौथे सोहणे लक्ष्मी दीठी, रयण कमलमां सोहे । अंग आभूषण नहीं कोई दुषण, आरीसे मुख जोवे || परिमल | मेलति अति सोमंति, भली फुलांनी माल । स्वप्न पांच में दीठां हो स्वामी, कुसुम झाक झमाल ॥ ४ ॥ ढाल || छठे शशी दीठो, सोलह कला सोहंत । तिम तिमिर निवारण, सहस किरण दीपंत | आठमें ध्वन सोहे, कनक कलश जलकंत । अमृत रसे भरियो, | नवमें तेह पेखंत || उलालो || तोरे, नवमें सोहणे कलश सुचंगा, पद्म सरोवर दशमें। खीर जलधर जिम गाजंतां दीठो एकादशमें || | देव विमाने दुंदुभी वाजे, गाजे गहर गंभीर । स्वम बारमें दीठो हो स्वामी, कंचन गिरि समधीर ॥ ५ ॥ ढाल || रत्नांनी राशी, देखी तेज करंत । निर्धूमी अग्नि, घृत मधु सु सिचंत ।। ए ए को सोहणां, लाधां हर्ष घरंत ॥ उलालो || हर्ष धरतां लाधां सोहणां, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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